Neetish Kumar   (Sufi ishq)
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Joined 26 February 2018


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Joined 26 February 2018
9 OCT 2021 AT 22:39

हजारों ज़ख़्म है मासूम दिल पर,
छिपा लिए मुस्कान से सिल कर।।

दर्द तो होता ही खो कर अपनों को,
पेड़ नहीं गिराता पत्ते ख़ुद हिल कर।।

चलो आज फ़ुरसत भी है ग़म बाँट लें,
आ फिर से मिल लें हसीं से मिल कर।।

हवाओं को भी आज़माने दे जोर अपना,
बुरा वक़्त गुजर जाएगा यूँ मुस्कुरा कर।।

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13 SEP 2021 AT 22:20

I can't keep aside,
What I am, who i am...

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13 SEP 2021 AT 22:14

When there is nothing works , take rest and enjoy that moment with calm and peace mood.

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13 SEP 2021 AT 22:11

जब दिल लगाना था दिल टूट गया।
अब दिल है कि सब से रूठ गया।।
आते थे आँसू तो रोता था कभी।
अब तो ये सारा समंदर ही सूख गया।।

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9 SEP 2021 AT 21:28

कितनी अजीब बात है।
ये उसकी यादें साथ है।।

उससे हसीन कौन है?
जो यादों में साथ है।।

ख़ुदा ज़न्नत कैसी होगी?
ये यहाँ कौन जानता है।।

लोग तलाशतें हैं जिसे,
वो जन्नत मेरे पास है।।

जितना भी बोलूँ कम है।
मेरा बोलना उसे खास है।।

वो दूर से सुनती है मुझे,
उसका सुनना बड़ी बात है।।

यहाँ वक़्त नहीं अपनों को,
और उसे ये गैर, अपनों से खास है।।

बड़ी अजीब महोब्बत है ये,
सब कुछ तो लूट लिया,

होश में आना किसे है।
इश्क़ में जाम सी बात है।

देखो अकेला रहता हूँ।
मगर वो यादों में साथ है।।

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7 SEP 2021 AT 23:18

ये अजीब माहौल बन गया है।
जिसे चाहा वो बिछड़ गया है।।

खुद को सुधारा वक़्त बे वक़्त,
अब ये ज़माना बिगड़ गया है।।

अब तक साथ रहने वाला दर्द,
यूँ धीरे-धीरे तन्हा छोड़ गया ।।

दवा तो नहीं माँग था या ख़ुदा,
फिर क्यों ज़ख्म सिकुड़ गया है।।

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29 JUN 2021 AT 9:11

वहम हुआ तो नज़र आया ऐसे।
वो दूर ज़िन्दगी का सहारा था।।
तैर कर पहुंचा था उम्मीद से,
मेरा क़ातिल समंदर किनारे था।।
मैंने हाथ बढ़ाया सहारा मांगने को।
मेरे सहारे के हाथ खंज़र था।।
@नीतीश कुमार

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29 JUN 2021 AT 8:49

हिम्मत नहीं होती अपना मुंह खोलने की।
खूबसूरती किसी हसीना से यूँ तोलने की।।
महोब्बत कर बस ख़ामोश रहने लगा हूँ।
क्या हिम्मत दाल में नमक कम बोलने की।।

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29 JUN 2021 AT 0:03

दिल कभी रूठता था तो मना लेता था।।
मगर टूटे हुए दिल को फिर बनाऊं कैसे?

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28 JUN 2021 AT 23:53

जरा सा ग़म ,कम ना हुआ।
कम हुआ तो ग़म ना हुआ।।
तन्हा था आदत थी मुझको,
तेरा हुआ तो तन्हा ना रहा।
धड़कने जो धड़कती थी कभी,
तेरे बाद फिर धड़कना न हुआ।।
दग़ा, धोखा, जालसाजी आदत थी।
बेवफ़ा मैं तुझसा कभी ना हुआ।।

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