कहने को तो खुद का कुछ भी नहीं;
लेकिन, हाँ कुछ ज़िम्मेदारी सिर्फ़ तुम्हारी हैं|
कि चाहो तो लड़ लेना दुनिया से,और हार जाना ख़ुद से!
लेकिन कभी ये मत भूलना, अब ये नियति सिर्फ तुम्हारी है!!
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#neetikagupta
आख़िर वक़्त ही तो है, ये पल भी यूं ही गुजर जाएगा;
यहां सिर्फ़ बातें ही तो है, कभी तो पर्दा भी डल ही जाएगा!
लेकिन, ये जो घाव है ऐसे ही रह जाएंगे;
समय चाहे कितना ही, ना हो गया हो! लेकिन मरहम कभी कोई नहीं लगाएगा☆☆☆-
तुम्हारी समझदारी मुक्कमल हो जायेगी;
गर जो आँखों ने ग़म को गुरूर से छुपाना सीख लिया!
फ़िर काजल भी आख़िर क्या कर लेगा, गर बहते पानी ने खुद को तालाब मान लिया|
क्या ये नजरे अब भी इठला कर बातें करती है!
या फ़िर अंधेरे ने "इन्हें" भी ख़ूबसूरती से टिमटिमाना सीखा दिया ☆☆☆-
गर जो दीवारों के भी कान न होते,
तो तुम्हारी सिसकियों को आखिर कौन सुनता!
गर तो जो ये मखमली चादर ही न होती,
तो तुम्हें अंधेरे में कौन ही सहलाता।
शायद घनी रात का जल्दी गुज़र जाना ही सही है;
नहीं तो तुम्हे पुरानी कहानियों से कौन बचाता!?
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कि राते बितती रही, और हम ख़ुद को ही खर्चते रहे;
आख़िर जिम्मेदारी सारी हमने जो ले रखी थीं, ताकि जागीर कोई और ले सके!
कब रोशनी से डर लगने लगा, और कैसे अंधेरे ने हमें अपना लिया कुछ पता ही ना चला!
कि अब तो बस अनजान सफ़र पर चल पड़े है,
ताकि मंज़िल की फ़िकर कोई ओर करते रहे।।
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किसी और के लिए ना सही, लेकिन ख़ुद के लिए कुछ अक्स खुद का बचा कर रखना!
कि हर रोज़ अख़बार में नए किस्से आएंगे,
तो तुम ख़ुद को कभी इन किस्सों में खोने मत देना।
आख़िर खबरों को कभी सच की जरूरत कहा ही होती हैं;
इसलिए अब से तुम ख़ुद को अपने गुरूर से छुपा कर रखना!
गर जो ग़लत नहीं कि तुम्हारे ख़्याल कोई बोझ है,
तो जिस क्षण भी मन करे, अब इन खयालों को ही मिटा देना।।-
ख़ुद का कहने के लिए तो आसमान भी नहीं है,
गर सच कहे तो दुनिया को दिखाने के लिए भी इक मकान नहीं है।
न जाने कैसे मोड़ पर रोज़ ही आकर खड़े हो जाते हैं!?
कि सच तो छोड़ो लेकिन अब तो झूठ की दुकान पर भी हमारा सामान नहीं है।।
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आख़िर कब तक ख़ुद के जज्बातों को कब्रिस्तान में छुपाना पड़ेगा;
कभी न कभी तो सब्र का पहाड़ भी पत्थर बन कर टूटेगा!
कैसे ही टूटते तारे से भी उम्मीद ना रखे,
आख़िरी में तो क़िरदार ख़ुद ही तारा बनकर चमकेगा।।-
क्या भीड़ में खो जाना, ख़ुद के खो जाने से बेहतर होगा!
क्या इक आख़िरी मौका ख़ुद से ही मिलने का, अब कभी मुक्कमल होगा।।-
जिंदगी में ना सही, लेकिन खयालों में तो ठहराव ज़रूरी है।
ख़ामोशी तो नहीं लेकिन अल्फ़ाज़ तुम्हारे;
तुम्हारे ही नजरिए का दर्पण है, इसकी ख़बर होना ज़रूरी है।
कि लम्हें नहीं लेकिन शायद लफ्ज़ तो यादें बन जाते है;
इसलिए तुम सजदा तो करना लाखों दफा खुदा के सामने;
लेकिन याद रखना हर ग़लती माफ़ हो, ये ज़रूरी नहीं है।-