उलझे ख़्वाबों में जज़्बात पढ़ लेती हूँ
अधूरे सवालों में हालात पढ़ लेती हूँ
तन्हाई में तुम्हारा एहसास पढ़ लेती हूँ
तुम लिखो चाहे नफ़रत के क़शीदे कितने
मैं हर हर्फ़ में मोहब्बत का आग़ाज़ पढ़ लेती हूँ-
नए साल से उम्मीदें आज भी पुरानी हैं
इश्क़ के जुमले वही
और तुम्हें सुनाने को आज भी वही कहानी है।-
कुछ ज़्यादा कहाँ थी आरज़ू हमारी
बस हर मौसम में हो मौजूदगी तुम्हारी।-
आधा-अधूरा प्रेम
तुम्हारा हिस्सा नज़रअंदाज़गी,
मेरा हिस्सा ख़ामोशी।
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दिसंबर में जनवरी के एहसास सा
तू दूर है बहुत, और है कित्ता पास सा।-
तू छोड़ बातें
रात की, चाँद की
इक़रार की, इज़हार की
चाँदनी के प्यार की
चकोर के इंतज़ार की
बेपरवाह सुबह की
बेवफ़ा शाम की
तू बस पास मेरे बैठा कर
तू बस साथ मेरे बैठा कर-
दोनों को
मुकम्मल इश्क़ ही तो चाहिए था,
तुम्हें ज़रा सा मैं,
और मुझे ज़रा सा
तू ही तो चाहिए था-
मेरी ख़ामोशियों से जानना, जाना मुझे तुम
हँसी से मेरी तो ज़माना बावस्ता है।-
दिलों की उलझनें
आँखों के सवाल
होठों पे आज भी है
वो अधूरे इश्क़ का मलाल।-
हाथों में हो हाथ तुम्हारा,
और उम्र भर का साथ हो।
तुम रहो हमेशा करीब हमारे,
और तुमसे ही शुरू दिन और रात हो।
जाना, जान जाओ जो ये अरमान हमारे,
और कहने वाले हमसे,
तुम्हारे यही सारे जज़्बात हो।
तो फिर जीने की क्या बात हो।-