वजूद नहीं जिसका वह बूंद हूं मैं ,
जो मिलूं सागर मे तो खुद समंदर हो जाऊं
डर को सहला लिए बहुत झोंके हवा के बन ,
साए में अब तेरे मैं बवंडर हो जाऊं
एक धूल कण का अस्तित्व क्या,
इस मरूस्थल से बेज़ार में ,
रोशनी में तेरी अब, रेत भरा रेगिस्तान हो जाऊं,
निभाऊं किरदार ऐसी शिद्दत से ,कि नाज़ करें खुदा भी ,
जो भूलाए ना भूलें , वो गहरी दास्तान हो जाऊं
एक कतरा सा लम्हा जो ठहरता नहीं ,
पनाह में तेरी,अब पहचान जिंदगी हो जाऊं
मलाल क्यों हो इन सांसों के छूट जाने का,
मैं नाम लूं तेरा और बंदगी हो जाऊं
बनके खुशबू महका दूं यह समा को ऐसे,
जैसे इत्र को छूकर मैं हवा हो जाऊं
क्यूं ठोकरें दूं मैं पत्थर बन किसी पत्थर दिल को,
जब साथ हो तेरा , तो हृदय पर्वत दवा हो जाऊं
खुद ही में रहा मैं खुद को ही नजरअंदाज कर,
खुद से मिलकर अब खुदा हो जाऊं
खो जाऊं रोशनी में तेरी इस कदर की,
तुझको पाकर खुद ही से मै जुदा हो जाऊं ।
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