वक्त की अब यही हैं गुज़ारिश कि,
वक्त को वक्त से बेवक्त कर दूं ।
तुम जो गर पढ़ों हाल-ए-दिल मेरा ,
जज़्बात की क़लम में स्याही रक्त कर दूं ।
ख़्वाबों की मिनारें जो बनाई हैं ख़यालातों में ,
उन महलों मे कही, तेरे नाम एक तख़्त कर दूं ।
जो बसी है खुशबू तेरी ,मेरी सांसों की गलियों में ,
उस एहसास-ए-इत्र को मैं प्यार भरा ख़त कर दूं ।
कही भी जाओं, पर लौट आओ पनाह मे मेरी ,
उम्मीद को पंछी और निगाहों को मैं दरख़्त कर दूं ।
दिल की इस कैद में न रिहाई हैं , न जमानत ,
गर हो तेरी इजाजत तो आ तुझे ज़ब्त कर दूं ।-
इश्क़ नहीं हूँ जनाब , मैं प्रेम की तासीर हूँ ।
वजूद नहीं जिसका वह बूंद हूं मैं ,
जो मिलूं सागर मे तो खुद समंदर हो जाऊं
डर को सहला लिए बहुत झोंके हवा के बन ,
साए में अब तेरे मैं बवंडर हो जाऊं
एक धूल कण का अस्तित्व क्या,
इस मरूस्थल से बेज़ार में ,
रोशनी में तेरी अब, रेत भरा रेगिस्तान हो जाऊं,
निभाऊं किरदार ऐसी शिद्दत से ,कि नाज़ करें खुदा भी ,
जो भूलाए ना भूलें , वो गहरी दास्तान हो जाऊं
एक कतरा सा लम्हा जो ठहरता नहीं ,
पनाह में तेरी,अब पहचान जिंदगी हो जाऊं
मलाल क्यों हो इन सांसों के छूट जाने का,
मैं नाम लूं तेरा और बंदगी हो जाऊं
बनके खुशबू महका दूं यह समा को ऐसे,
जैसे इत्र को छूकर मैं हवा हो जाऊं
क्यूं ठोकरें दूं मैं पत्थर बन किसी पत्थर दिल को,
जब साथ हो तेरा , तो हृदय पर्वत दवा हो जाऊं
खुद ही में रहा मैं खुद को ही नजरअंदाज कर,
खुद से मिलकर अब खुदा हो जाऊं
खो जाऊं रोशनी में तेरी इस कदर की,
तुझको पाकर खुद ही से मै जुदा हो जाऊं ।-
प्रकृति ही एकमात्र परमात्मा है
और मानवता ही एकमात्र धर्म ।
(In caption)-
वक्त के चक्रव्यूह में, हम बेफ़िज़ूल ही झुलझते रहे ,
जिंदगी सामने खड़ी थी, दुनियादारी में उलझते रहे-
हाँ..., यही शाश्वत है कि हमारा मिलन वास्तविकता से परे है ।
“बेहद” से “हद” का सफर तय करना तुम्हारे अस्तित्व का खंडन है ।
पर क्या ....इस पूरे ब्रह्मांड में जीवन से भरा, खिल-खिलाता मेरा चेहरा
तुम्हारे प्रेम का प्रतीक नहीं ?
मोह की परिधि में घूमते हुए भी
स्थिरप्रज्ञ होकर मैनें तुम्हें ही तो निहारा है ।
देखा है तुम्हें रोज सूरज से चमकता हुआ ,
चांद से दमकता हुआ और
छोटे छोटे तारों से तुम्हारा सुसज्जित लुभावना श्रृंगार ।
जानती हूँ कि , मेरी तड़प में बेचैन तुम भी होते हो,
तभी तो जब प्यासी होती हुँ , तो बारिश भेज देते हो ,
कभी बादलों से गुदगुदाते हो , तो कभी
भिन्न-भिन्न एहसासों से लुभाते हो ।
रात के टिम-टिमाते तारों को
सुबह ओस की बूंदों में उतार देते हो,
सौगात के रूप में बादलों के गुब्बारे ,
रोशनी से भरे उजाले,
सौन्धी सी हवा के झोंकों संग,
हर रोज धूप बनकर मुझे गले लगाना
तो कभी शीतलता से मुझमें समा जाना ।
सच तो यह है कि ,
प्रेम की पराकाष्ठा "मिलन" नहीं ।
तुम्हारे मेरे बीच के जो अदृश्य सेतु है,
जो अटूट बाण हमने जोड़े है वही तो "प्रेम" है ।
"क्षितिज" पर हमारा मिलन "प्रतीत" हो ना हो पर
इस सृष्टि में प्रेम की परिभाषा यही हैं ।
-Neeti Agrawal-
भागती दौड़ती जिन्दगी में एक ठहराव भी जरूरी हैं ,
सही गलत में फर्क जानने को भटकाव भी जरूरी हैं ।
अच्छे ही अच्छे से मिलोगे तो , बुरे को जानोगे कैसे,
जो ना टकराए गलत से, तो सही को पहचानोगे कैसे ।
आँसू न आए आँखों में तो हँसी का फिर क्या मोल होगा ,
मुश्किलें ही ना आए राहों में तो संघर्ष का क्या तोल होगा ।
कर्म के सिद्धान्त को जब अपने जीवन में उतार लोगे
किसी को मुस्कुराहट देकर, खुद भी सूकुन पा लोगे ।
इन्सान हैं हम, गिरेंगे-उठेंगे, गलतीयाँ भी सौ दफ़ा करेंगे ,
जाने अनजाने में शायद किसी अपने को भी ख़फा करेंगे ।
कर्मों का यह खेल निराला, नियम से ही चलता हैं ,
प्रेम के बदले प्रेम व सम्मान से सम्मान पलता हैं ।
दूसरों से जैसा जो व्यवहार करे, खुद भी वही पाता है ,
वही मिलेगा जो दिया औरो को, दुजा न कोई खाता हैं ।
आचरण ही व्यक्ति का परिचय हैं, जिस दिन यह बात जान लोगे
“प्रेम ही जीवन का आधार है”, अपने व्यक्तित्व में यह ठान लोगे ।-
मुक्त होने के लिए रिक्त होना जरूरी ।
रिक्त होने के लिए तृप्त होना जरूरी ।
(In caption)-