🇮🇳मैं भारत🇮🇳
में आज जैसा दिख रहा,
एकदम संघर्षों से परे,
लोकतंत्र की छाया में,
सुव्यवस्थित काया में,
पीछे इसके सौ दर्द छिपे,
कई मर्दानी कई मर्द छिपे,
जिनके लहू के कतरों से,
लोहे से दृढ़ संकल्पों से,
आल्प्स से पर्वत तोड़ दिए,
पश्चिम के समंदर मोड़ दिए,
तब मैंने पुनर्जन्म लिया,
बेड़ी-जंजीरों से परे,
में आज जैसा दिख रहा,
एक दम संघर्षों से परे,
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