क़ैद करके रखा था यादों को पिटारो मे.
कल शाम ऐसी आई ,सब याद आ गया
चेहरे दिखे मिलते जुलते
होठ स्तब्ध दिल उनसे सब बात कह गया ..
ढूंढा भीड़ में उस शक्स को मैने..
जो होकर दूर फिर दिल के पास आ गया ..-
जो नही मिलता कुछ तो लिख देता हूं उसे।
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झूठ की इस दुनिया में सत्य मिलेगा कब
लम्बी-लम्बी फेक रहे सब, शून्य है करतब।
बातों में लाख करोडो सबकी जेबो में है भरे हुए
अंदर से है सब खोखला पर फिर भी सीना ताने खड़े हुए
एक होड़ लगी है दिखलावे की, मैं आगे हूं मैं आगे
पर सत्य यही है खुद से खुद को है वो ठगे हुए.
"ॐ" विवश है लिखने को इस मायावी लोगो पर
चेहरे पर चेहरे लगा घूम रहे जो नित प्रतिदिन सड़को पर !-
तपना पड़ा है माँ पार्वती को, और माँ सीता को।
फिर राधा और मीरा को।
"प्रेम" शब्द है सूक्ष्म सा पर मायने इसके बड़े है।
पास हो तो सुखद अनुभूति दूर हो तो विरह बड़े हैंl-
चल रहा था रस्ते में मिल गया कोई।
नजरो के रास्ते दिल में मेरे उतर गया कोई
दीदार जब हुआ तो दिल खो गया मेरा।
धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते "प्रेम" इश्क हो गया
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वक़्त को "एक वक़्त था" बनते ना वक़्त लगता है.
तेरे बिन एक वक़्त भी क्यूँ कम्बख़्त लगता है।
ख़ुशियो के कुछ चंद लम्हे साथ तेरे थे।
तू नहीं तो सब मुझे अब बेवक़्त लगता है.
साथ सपने थे सजाये, हर तरह ही प्रेम था।
अब प्रेम तुम बिन सब मुझे संघर्ष लगता है.
वक़्त को "एक वक़्त था" बनते ना वक़्त लगता है.....-
"प्रेम" तुम्हीं हो जीवन मेरा।
काली रातो में भी सवेरा।
उलझी सी इस दुनिया में तुम
बंधन ऐसे जैसे सातो फेरा।
रूह में मेरे बसी हुई हो।
आत्म शक्ति से जुडी हुई हो.
हर समय पास में रहती हो
जैसे धक धक करता धड़कन मेरा.
प्रेम तुम्हीं हो जीवन मेरा....
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"प्रेम" की पहली पंक्ति ही शिवशक्ति हैं
प्रेम ही भक्तों की सच्ची भक्ति है।
पावन सावन की बुंदे जब धरा पर गिरती है।
प्रेम की खुशबू से माटी खूब महकती है।
प्रेम दवा से बढ़कर भी हो जाती है
जब रोगी काया पर प्रेम बरसती है।
प्रेम ही सृष्टि का करती है आदि सृजन.
जब शक्ति शिव को आकर्षित करती है
प्रेम में आकार ही शव शिव बन जाता है
बिना प्रेम के शंकर को शमसान ही भाता है।
प्रेम में पड़कर ही शिव खूब बिलखते हैं
शक्ति के प्रेम को पाने को हर रोज तरसते हैं
वैराग्य लिये जब शिव समाधि में जाते है।
सती की यादों से फिर भी बच ना पाते हैं
देख प्रभु की दशा सती बिन हर कोई रोता।
फिर दुनिया में पूरी बस अंधकार ही होता।
सृष्टि मिलकर फिर शक्ति को है याद दिलाती.
हे आदिशक्ति भोले की ये दशा न देखी जाती.
प्रेम प्रभु का इतना निश्चल होता हैं
की माँ जगदम्बा का फिर पुनर्जन्म होता है।
फिर भोले कर लेते है थोड़ा और इंतजार |
माँ जगदम्बा करती है घोर तपस्या बिन आहार।
हो प्रसन्न फिर पार्वती से प्रभु खूब मुस्कुराते हैं।
त्याग, समर्पण, वैराग्य साध कर दोनों मिलकर अर्धनारीश्वर कहलाते हैं।
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तड़पता है ये दिल मेरा, कि अब जान नहीं जाती।
खबर आई नहीं उनकी, और सांसे रुक नहीं पाती।
एक एक घड़ी अब लग रही है साल के जैसे ,
सावन भी आया पर बरसात नहीं आती।-
जान से अंजान तक सबसे है मेरा वास्ता |
प्रेम ही मंजिल हमारी प्रेम मेरा रास्ता||-
शादिया अब बिक रही है बाज़ार के भाव में।
दिल टूटते जा रहे है, जाति-पाति के पाप में!!
समाज और परिवार ने बंधन में रखा प्यार को।
"प्रेम" दिल में रखके जीवित सौपा खुद को आग में!!
है विवश रोने को दिल पर आंसू कहीं अब खो गया !
जिससे सुबह और शाम थी वो सपने जैसा हो गया!!
एक आशा ईश्वर से जगी अब आप ही तो तार दो।
दिल में रहते हो मेरे तो दिल को मेरे प्यार दो!
एक शक्श ही तो चाहिए जीवन के इस मायाजाल में!
क्योंकि दिल टूटते जा रहे है जाति-पाति के पाप में!!
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