"ट्रेन में राखी का त्यौहार..."
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लिखता हूं जो feel करता हूं
जो अपनों से मैं बात करता हूं
मेरी दोस्त को मेरी मेहबूबा लिखता ... read more
Chaaron taraf hain apne, par dil mein akelapan hai,
Kadam chhoti chhoti khushi ke, jaise bandhan mein hain.
Apna raasta chahoon to, sawaal hazaar uthein,
Ghar hai ya pinjra koi, yeh soch ke dil roye.-
"नाम में सुकून"
घर की शांत दीवारों के बीच,
अकेले रहकर एक बात समझ आई —
जीवन को चलाने के लिए
हर समय किसी इंसान की आवश्यकता नहीं होती।
आवश्यकता होती है तो केवल भगवान के नाम की,
जो प्रत्येक श्वास में समा जाए,
जो हर दुःख में सहारा बन जाए।
कर्म करते रहो, पर मन उसी में लीन रहे,
नाम का जप जैसे कोई मधुर भजन,
जो दिन की थकान हर ले,
और रात्रि की नीरवता में दीपक बन जाए।
दुनियादारी के कोलाहल से कुछ पल दूर,
भीड़ से हटकर स्वयं के समीप आना,
अपने अस्तित्व को अनुभव करना —
यही है सच्चा जीवन।
स्वयं में मग्न रहना कोई एकांत नहीं,
बल्कि वह एक अंतरंग भेंट है,
जो केवल आत्मा और परमात्मा के बीच होती है।-
नज़रें धुंधली, यादें धुंआ, ख्वाब हुए बेगाने,
इंतज़ार, वादे, जज़्बात, सब किस्से पुराने।
एकतरफा रिश्ता भी, अब लगता है भरम सा,
खुद से ही बिछड़ा हूँ, ये कैसा है सितम सा।
कहाँ जाके ठहरूँ मैं, खुद को ही खोकर,
अजनबी सा हो गया, अपनी ही नज़र में रोकर।
मिलन के सपने थे, बिछोह की ये शाम है,
खो गया हूँ खुद में, ये कैसा मुकाम है।
सब कुछ छूटा पीछे, अब क्या तलाशूँ मैं?
खुद को ही ढूंढता हूँ, किस राह पे चलूँ मैं?-