प्रियवर मेरे अब न रूठों
तुम तो जानो सारे राज़
मेरा सर्वस्व तुम ही हो प्यारे
फिर अपने से...... कैसा नाराज़
क्षमा करो अब भूल मेरी तुम
मैं अज्ञानी गुड़िया
तुम ही कहते रहूंगी बच्ची
चाहे हो जाऊं मैं..... बुढिया
मैं भूलों की भरी पिटारी
गलती सब मैंने मानी
मुझको अब एक डांट लगा दो
बन कर मेरे अधिकारी
अच्छा रूठे रहना तुम
पर बाते मुझसे बोलो
प्यार जताना न मुझको
पर मुंह न मुझसे मोड़ो
गुस्ताखी मैने मानी है
पर अब ......मुंह तो न पिचकाओ
हां नही तो मैं सब कर रही हूं
अब तो मान भी जाओ
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Risky angle
Make me surprised on 9th of june
One of the fan of Dr. Kumar Vi... read more
इरादे बांधता हुँ ,जोड़ता हुँ, तोड़ देता हुँ,
कसमकस में है ये जिंदगी, कुछ जोड़ लेता हुँ
ज़माने की फ़िक्र मुझको, जमाना बोलता है क्या
इस कसमकस में पड़ के मै क्या कुछ छोड़ देता हुँ
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वो जान मेरी ज़िंदगी सब जान लेती है
मेरी ख़ामोशी में भी शब्द वो पहचान लेती है
मेरे आँसू नहीं निकले न मुस्कुराहट ही जाती है
दिल के गमों को फिर भी वो पहचान लेती है
मै ग़मगीन रातो में लिपट तकिये से रोता हूँ
आँखों के बुझते नूर को वो भाप लेती है
कहूं किस कलम से मै कुदरत के करिश्मे को
एक माँ ही है जो बिन कहे सब जान लेती है-
इक न इक दिन छोड़कर जाना मुझे है ये पता
किस दौर से गुजरा ज़माना दौर सारे है पता
चुभ रहा है मौन तेरा घुटन सी होने लगी है
किस ओर होगा अब ठिकाना ठौर सारे है पता-
उम्मीदों का खजाना कभी खाली नहीं होता
टूटती उम्मीदों से सफर आखिरी नहीं होता
गिर कर उठना ही तो जंग-ए-ज़िन्दगी है जनाब
वरना उम्मीदों के सहारे जग कायम नहीं होता
वक़्त की तो फ़ितरत है गुज़र जाने की
बुरे को भी गुज़रते वक़्त नहीं लगता
हम हार भी जाये तो दौर-ए-ज़िंदगी है जनाब
आखिर मयखाने में हर शख्श शराबी नहीं होता-
नफरत "अभी" बस मोहब्बत से हो गई
वरना खिलाड़ी जंग-ऐ-इश्क़ के हम भी जाबाज थे-
"अभी" वक़्त मिले तो गौर फरमाना
वक़्त मिलना नहीं निकलना होता है
तुम्हारा खास होना
महँगे तोफे का एतबार नहीं
तुम्हारे वक़्त का इंतज़ार होता है-
'अभी' सुबह रंगीन और शाम हसीन हो रही है
लगता है रंग ला रही दुआएं उनकी
'दुआएं' जिनका कोई रंग नहीं होता-
जिंदगी के पन्ने पलट रहा था
मुलाकात कुछ अधूरे ख्वाब से हुई
मै दर्द में था उनके पूरे न होने से
और वो दर्द में थे मुझे ग़मगीन देख कर
उन्होंने कहा, साथ छोटा था
पर खुशनुमा था मेरे यार
क्या पूरे नहीं हुए
तो मिलकर मुस्कुराओगे नहीं
अपने थे न......मिलकर
लबो पे मुस्कराहट लाया करो
पानी तो हमने भी देखे है
तुम्हारी आंखो के-
कभी बात करने को
जिन्हे थी नींद न आती
कभी मिलो तो 'अभी' पूछना उनसे
क्या अब भी है रातें यूँ ही तकती-