Neelu Kumari   (Neelu k.)
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Joined 16 December 2017


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Joined 16 December 2017
17 HOURS AGO

* रिश्तों की डोर *

आओ, रिश्तों को फिर से बुनते हैं।
'मैं', 'तुम' नहीं, 'हम' को चुनते है।
तुम धागा प्रेम का लाना,
मैं गांठें उम्मीद की लगा दूंगी।
तुम मोतियां अनमोल पलों के लाना,
मैं उसके साथ विश्वास पिरो दूंगी।
इस तरह रिश्तों की डोर ये अटूट बन जाएगी,
यकीन है मुझे ये वक्त की मार भी झेल जाएगी।

बहुत कुछ खोना पड़ता है पाने के लिए,
बहुत कुछ सहना पड़ता है, निभाने के लिए।
आंखों में आसूं है, तो सपने भी आएंगे,
जो दिल से अपने हैं, संग वो हीं आएंगे।
जो जीते हैं रिश्तों को, वो कम हीं होते हैं,
सच कहूं, जीवन में, वो मरहम हीं होते हैं।
कुछ बातें उनकी बुरी लगे भी, तो सहना पड़ता है।
अपनों को इतना ह़क तो देना पड़ता है।
पर ध्यान इस बात का भी रखना,
कुछ रिश्ते, रिश्तों का केवल नाम लिए होते हैं।
अच्छे बुरे रिश्तों की पहचान भी जरूरी है।
सब के मतलब में फर्क होता है,
इसलिए कोई देता है आंसू और कोई पोंछता है।
जिन रिश्तों की बुनियाद, प्रेम और विश्वास है,
उन्हीं में बाकी, रिश्तों की मिठास है। © Neelu k

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24 APR AT 13:03

झूठी शान, झूठा वो सिर पर ताज था
अपने कर्तव्यों को पहचान न पाया,
कैसा समाज था?
वसुधैव कुटुम्बकम्, सब हैं भूल चुके,
समग्र विकास की राह भला कौन चुने?
द्रवित नहीं होती आत्मा, चित्कार सुनकर
मौन रहता है समाज, निष्प्राण होकर।
इसने नाम छीन लिए, पहचान छीन लिए,
कम पड़ा, तो स्वाभिमान छीन लिए।
आसान नहीं है इस समाज में शुद्ध हो जाना,
तुम्हारा और मेरा बुद्ध हो जाना!

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24 APR AT 10:35

*रुक जाओ*

तुम्हारे बढ़ते कदमों के साथ बढ़ रहीं हैं दूरियां।
कहीं तबाह न कर दे हमें, ये सितम, ये मजबूरियां।

अब तस्वीरों में, मैं कोई रंग नहीं भर पाउंगी,
इन बेरंग पड़े पन्नों को बंद नहीं कर पाऊंगी।

एक अंधेरा सा छा रहा है, आहिस्ता आहिस्ता,
न हमारी मंज़िल का पता है, न दिखता है कोई रास्ता।

ये सच है, तुम बिन मेरा फ़लक सूना होगा,
एक शफ़क मन के अन्दर होगा एक बाहर होगा।

नहीं बता पाऊंगी मैं कि इंतज़ार कैसा होगा,
हर ख़्याल में तुम होगे, सितम कुछ ऐसा होगा।

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23 APR AT 16:05

------*ख़ुद को बदलती औरतें*-----

न दिल साफ़ किया, न कभी माफ़ किया।
हर रिश्ते ने उन्हें, इतना क्यूं बर्बाद किया?

आरोप वही हैं, हालात वही हैं, समाज वही है।
हुई बदनाम वही हैं, हां उन्होंने ये स्वीकार किया।

सालों का सीखा वें भूल नहीं सकीं,
पर जो कर सकती थीं वह किया।

क्या ग़लत हुआ अगर कुछ अलग सोच लिया?
इस बार अपना जीवन, अपने हीं नाम किया।

उन्होंने सोच बदली है, अपने संस्कार नहीं।
मर्यादा में रहकर, बदलाव को स्वीकार किया।

पछतावा तो रहता होगा उनको, तानों को सुनकर,
इस आत्म ग्लानि से उन्होंने स्वयं को स्वतंत्र किया।

सबके लिए जीतीं थीं, वे नादान थीं न शायद,
उन्होंने अब तक अपना पूरा जीवन हीं तो दान किया।

चरित्र निर्माण करने वालीं हीं, चरित्रहीन हो गई!
देखो हालत उनकी, जब समाज ने प्रहार किया।

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22 APR AT 13:29

तुम लौट आना

किसी की मुस्कान में, वजह, ख़ुशी की घोलने आना,
तमाशा है ज़िन्दगी, साथ अपने, मेरा किरदार ले आना।

सब्र ने इम्तिहान बहुत दे दिए उलझनों में रहकर,
तलाश है जिसकी मुझे, तुम मेरा वो सुकून ले आना।

हर पल बिखरी हूं, अपनी ख्वाहिशों के साथ,
उम्मीदें जो टूटी पड़ी हैं कब से, पूरी करने लौट आना।

जागती आंखों में अब भी सपनें हजार हैं,
ख़्वाब वो मेरे टूटने से पहले तुम, लौट आना।

मेरी मुस्कान बनकर मुझमें शामिल हो जाना,
अधूरी है जो कहानी उसे मुकम्मल करने, लौट आना।

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21 APR AT 16:19

वो रात के उलझे तारों को सुलझाते हैं,
हमारी बस्ती में दिन कभी ढ़़लता ही नहीं ।

ऊपरवाले ने भर के भेजी है सारी खूबियां जिसमें,
इंसानों में वो एक इंसान अब तो मिलता हीं नहीं।

इंसान ने ख़ुद बना रखें हैं, एक ओर गड्ढा दूसरी ओर खाई,
और शिकायत है कि रास्ता उस से कोई निकलता हीं नहीं।

सुनता है सबकी पर दिल खोलता नहीं है,
उसे पता है एक बार जो बिखरा दिल फिर संभलता हीं नहीं।

जज़्बात से भरा दिल, जज़्बात हीं ढूंढता है सबमें,
पत्थर बना रखा है ख़ुद को, कभी पिघलता हीं नहीं ।

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21 APR AT 11:32

यादों की तरह ख़त भी रखा है हमने हिफ़ाज़त से,
दरमियां जब से फ़ासलों का बहाना हो गया ।


दास्तां अब भी ज़िन्दा है, तो वो तराने भी याद रहेंगे।
इतना मुश्किल क्या अब प्यार निभाना हो गया ?


मेरा इश्क़ तो अब भी वहीं दफ़न है तुम्हारे इंतज़ार में,
बस कम तुम्हारा उन गलियों में आना जाना हो गया ।


बन के अश्क हीं रहना चाहती हूं तुम्हारी आंखों में,
दुनिया में मेरा अपना बस यही ठिकाना हो गया ।


नाम पुकारकर अब क्यूं ज़ख्मों को कुरेदते हो,
ये तो बेवजह हीं ख़ुद को सताना हो गया ।

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20 APR AT 23:37

Neelu

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20 APR AT 14:11

पृथ्वी है अपनी, उसका तन मिट्टी का
अनंत ब्रह्मांड में, एक घर है मिट्टी का।
जल,जीव,जन्तु, हरियाली,
से सजा और संपन्न है।
अपने अस्तित्व की कहानी,
ख़ुद कहता मिट्टी का कण-कण है।
इसने देखा है कई सभ्यताओं को, संस्कृतियों को,
और आत्मसाथ किया है कई स्मृतियों को।
इस मिट्टी के घर में सभी पल रहें हैं।
बीज भी सांसें लेकर फूल फल रहें हैं।
इसने जीवन को आधार दिया है।
इतना स्नेह और इतना प्यार दिया है।
हम में भी है, कुछ अंश मिट्टी का।
पंचतत्व में एक तत्व मिट्टी का।
अनंत ब्रह्मांड में, एक घर है मिट्टी का।

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20 APR AT 8:53

कुदरत से जो सीखा है,
वो भी कुछ कम तो नहीं।
क्यों न हम इंसान भी किसी के लिए
धूप में, छांव शजर की हो जाएं।

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