* रिश्तों की डोर *
आओ, रिश्तों को फिर से बुनते हैं।
'मैं', 'तुम' नहीं, 'हम' को चुनते है।
तुम धागा प्रेम का लाना,
मैं गांठें उम्मीद की लगा दूंगी।
तुम मोतियां अनमोल पलों के लाना,
मैं उसके साथ विश्वास पिरो दूंगी।
इस तरह रिश्तों की डोर ये अटूट बन जाएगी,
यकीन है मुझे ये वक्त की मार भी झेल जाएगी।
बहुत कुछ खोना पड़ता है पाने के लिए,
बहुत कुछ सहना पड़ता है, निभाने के लिए।
आंखों में आसूं है, तो सपने भी आएंगे,
जो दिल से अपने हैं, संग वो हीं आएंगे।
जो जीते हैं रिश्तों को, वो कम हीं होते हैं,
सच कहूं, जीवन में, वो मरहम हीं होते हैं।
कुछ बातें उनकी बुरी लगे भी, तो सहना पड़ता है।
अपनों को इतना ह़क तो देना पड़ता है।
पर ध्यान इस बात का भी रखना,
कुछ रिश्ते, रिश्तों का केवल नाम लिए होते हैं।
अच्छे बुरे रिश्तों की पहचान भी जरूरी है।
सब के मतलब में फर्क होता है,
इसलिए कोई देता है आंसू और कोई पोंछता है।
जिन रिश्तों की बुनियाद, प्रेम और विश्वास है,
उन्हीं में बाकी, रिश्तों की मिठास है। © Neelu k
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