मैं वो पहाड़ हूँ.... जिसे झुकना नहीं आता, मैं वो आँधी हूँ.... जिसे रुकना नहीँ आता, बिखेर लाख काँटे, राह -ए- मंज़िल में मेरे, मैं वो सड़क हूँ... जिसे मुड़ना नहीं आता।
औरत की ज़िंदगी किसी ग़ुलाम से कम नहीं, अगर औरत अच्छी ग़ुलाम है....तो वो अच्छी बेटी, अच्छी बहन, अच्छी बीवी, अच्छी बहू, अच्छी भाभी और एक अच्छी माँ है....वर्ना इस खोखले समाज में उसकी कोई इज़्ज़त नहीं।