दिल उदास,घाटी उदास
कोहरा ही कोहरा दिखे आस-पास,
रवां-दवा झरना ही है बस एक आस,
क्या कभी मिलोगे, रह गई यही अरदास..!!
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दिल के कागज पर ,
उम्मीद की कलम से ,
ख्वाबों को संजोती हूं !!
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अनजानी सी डगर पर ये कैसी खु़श्बू बिखर आई हैं
ना जाने क्यूॅं ये हमें अपने बचपन में समेट लाईं है
कभी मतवाले थे इस ख़ुशबू के हम ये हमें जताने आईं हैं-
क्या कोई हो सकता है ऐसा ,
जो सिरहाने बैठ सके मेरे ...
मेरे सर पर हाथ रख सके .....
हाॅं....तुम....तुम हो ना ....
जो ......."आगोश "में लेके कहते हो मुझसे
......सो जाओ बाॅंहों में मेरी .....
मैं यहीं हूॅं तुम्हारे पास, तुम्हारे क़रीब...!!-
एक यार मिला मुझे प्यारा सा
बिछड़ेंगे नहीं कभी ये वादा था
जिसे कहने लगे अपनी हम जान
वो ना जाने क्यूॅं अनजान हो गया
चाहा हमने उसको इतना ज्यादा
कि वो हमसे ही परेशान हो गया-
कितना भी चाहूॅं तुझे भूलना ,याद आ ही जाती हैं
ये चमकते चाॅंद के साथ ,चाॅंदनी इठला ही जाती हैं-
Talking in My dreams to him about himself
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"एक ख़्वाब प्यारा सा"
देखा था एक ख़्वाब मैंने.... प्यारा -सा मासूम -सा.....
हद में रह कर देखा हमनें,खींचीं एक बारीक -सी रेखा ,
दायरा रखा दिल तक अपने ,.....
सोचा था ... कभी वक्त़ मिलें,तो हम जी लेंगें,...हॅंस लेंगें,
थोड़ा सा सुकूॅं तो हम भी पा लेंगें ,एक वक्त़ आया सुहाना,
हमने जीया अपना सपना पुराना ,खूब जीया ,खूब आनंद पाया ...
ठहरना चाहा हमने ख़्वाब में,ख़्वाब कहाॅं वो रूकने वाला,
बहता रहा वो भी अपनी रौ में,ना देखी दुनिया,ना देखें हालात,
बस हम जीते रहे वो हसीं ख़्वाब,लगा थम जाये ज़िंदगी ....यहाॅं ,
मगर ,रूकती कहाॅं है ये ज़िंदगी वहाॅं,
ख़्वाब बोला ...अब हुआ मैं पूरा यहाॅं,
चलता हूॅं मैं अब दूसरी राह...
टकटकी सी देखती रही मैं वहाॅं,
ख़्वाब दौड़ गया जाने कहाॅं...!!💞
@नीलिमा जैन
स्वरचित मौलिक रचना
बहती भावना
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'घनश्याम -प्यारे 'जी को , 'राधेश्याम-प्यारे 'जी को
राम-राम श्याम जी को ,
काल-कोठरी जेल में कैद ,
आज आयेगा रात को वो,
चोरों का चोर ,माखनचोर,
गोप-गोपियों का प्यारा श्याम,
जागते रहना तुम पहरे धाम,
उड़ा लेजाए ना कहीं चितचोर,
नैनों से मत करना तुम छेड़,
चैन चुरा के ले जायेगा,
आज आयेगा रात में चितचोर...!!-