गईं थीं मिलने उसको ,
करने दीदार -ए-यार का,
जो जा रहा था दूर मुझसे,
परिवार की खातिर अपने ,
निभाने फ़र्ज़ अपने सपनों से,
कर रहा बलिदान अपने प्यार को,
तो जाना ही था मिलने मुझे भी बिना बताए सबको...!!-
दिल के कागज पर ,
उम्मीद की कलम से ,
ख्वाबों को संजोती हूं !!
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बंद कमरा ,
रू़कूं ,या सजदा,,,,,,
या खुदा,
बस तु और मैं....!!
बता क्या करूं मैं...?-
दिल को छूने लगे तेरे 'अशआर'
जी करता है,पड़ा जाए इन्हें, बार-बार ।
'अदब' अब खुल के बयां करती हैं,,,,,सरकार!,,,-
एक सच्ची कहानी कृष्ण और राधा की ,जब कृष्ण के पैर पर घाव हो गया और उसका इलाज था कि कृष्ण की कोई भी पत्नी अपने पांव की धोवन से घाव को धोयेगी तो उनका घाव शीघ्र ही ठीक हो जायेगा....मगर उसके एवज में उस पत्नी के जीवन भर के पुण्य समाप्त हो जायेंगे और साथ ही पाप का फल और मिलेगा सो अलग,तब कृष्ण की सभी रानियों और पटरानियों और महारानी रूक्मिणी तक ने मना कर दिया मगर राधा का समर्पण भाव देखिये कि राधा ने कहा कि अगर मेरे कृष्णा की परेशानी मेरी जीवनभर के पुण्य से मिट जाता हैं तो मुझे वो सब पाप नरक ,भी स्वीकार्य है बस मेरे कृष्णा को रंचमात्र भी कष्ट ना हो
"ये हैं प्रेम में समर्पण की सच्ची अमर कथा"-
दिखा कई बार
मुझ को मेरा 'यार'
ना कहा कभी,
'संग मेरे चलो'
उम्मीद है अभी,कभी-न-कभी
देर से सही,कहेगा ज़रूर,,'
Belated ,,,,, Hello "',,,!!
,,,-
उलझाना शायद तेरा मनपसंद शग़ल था,
मैं यूॅं समझा कि शायद ख़्वाब बेचता है मुझे..!!
कशमकश में छोड़ कर यूॅं तन्हा छोड़ गए,
वो दरवाजे से देखते रह गए बरबस यूॅं ही मुझे....!!-
शुष्क रेगिस्तान में...
झल -झल बहती इक नदी सी
लगती हो तुम....
तो क्यों ना ....
समन्दर से बनकर...
खुद में समा लो मुझे...!!-
जब तक प्रेम हैं गुलमोहर पर पत्ते हैं,
तो क्या पतझड़ में प्रेम नहीं रहता...?
जब तक प्रेम हैं चाॅंद की चाॅंदनी है ,
तो क्या सियाह अमावस में प्रेम नहीं...?
मेरे प्रेम की कोई थाह नहीं कोई सियाह नहीं ,
प्रेम अमर बेल है, चाॅंद है कोई सियाह नहीं ...!!-
मेरी प्यास भी तु,मेरी नदी भी तु ,
मेरी बेचैनी भी तु ,मेरा सुकून भी तु,
कारण भी तु , तो निवारण भी तु ,
और क्या ही कहूं, मैं हूॅं तो वजूद तु-