ईश्क-ए-मोहब्बत मर्ज है क्या
मोहब्बत में अपार दर्द है क्या
रूठे हुए एक अरसे हो गए
मोहब्बत में कोई खुदगर्ज है क्या।-
दुख इस बात का नहीं कि उसने मेरा दिल तोड़ा
दुख इस बात का है कि बहुत देर में तोड़ा।-
मजलिस में फिर दिखी वो आज
गर्मजोशी अब पहले सी ना थी
चेहरे पे रौनक अब भी वही था
देख के अनदेखा मैने तो कर दिया
क्या वो भी नाटक ही कर रही थी-
Relationship required respect,
Respect begins from care,
Care begins from love,
Love begins from attraction,
Attraction begins from desire,
Desire begins from loneliness,
Loneliness begins from ego,
Ego begins from self-seeking,
Ending this requires character.-
जाती हो, जाओ तो सही
यादों में सुबह शाम होंगे
बहुत हुआ तो क्या
मोहब्बत में फिर नाकाम होंगे
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बस चलते चले जाना।
आकाश का टिमटिमाता सितारा
समुन्दर की लहरें, ये नदियों की धारा
किसी रोज सलाम करेंगी तुम्हारा
एवरेस्ट की फतह तू ही करेगा
रुकना नहीं, टूटना नहीं
बस चलते चले जाना।
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४४ # "अवतार"
कठिनाइयों से अब क्या डरना
सपनों का जब आसमान लिए
स्वतंत्र सोच का ख्वाब लिए
विजई-भव का आशीर्वाद लिए
खुद में जीत का विश्वास लिए
हे देश के प्यारे युवाओं
कर्मठी हो तुम हो तेजस्वी
तुम से है देश की अभिलाषा
हो गौरव तुम स्वाभिमान भी तुम
ज्ञानी हो तुम बलशाली तुम
ले कमर कस तैयार हो जा
योगी जैसा तू ध्यान लगा
अर्जुन के जैसा बाड़ चला
रड़ में अपना तू पैर गड़ा
मिट्टी को सीने से तू लगा
खुद को सच्चे अवतार में ला
अब देश का तू ही सान बढ़ा
मान बढ़ा सम्मान बढ़ा।
- "जय हिंद"-
44 # "अवतार"
जीने की चाह उड़ने की चाह
किस्मत खुद की लिखने की चाह
दुश्मन से निडर लड़ने की चाह
ऊंचाईयों को छूने की चाह
किंतु मार्ग में हो कोई बाधा
दुश्मन का क्रूर इरादा
मुश्किलों से भरा समंदर हो
काटों से भरा जो डगर हो
...... continued
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४३ # "पतंग"
पतंग सा उड़ता था मैं
कभी पास तो कभी दूर से गुजरता था मैं
आसमा की शैर अक्सर करता था
हवावों के साथ ही बहता था
वो मांझा था जिसने जोड़ा था हमें
बेरहमी से मांझा तूने काट दिया
दो दिलों को जुदा कर दिया
न जाने कहां-कहां भटकूंगा मैं
कोने - कोने सिसकुंगा मैं
तू मुझे ढूंढ ले एक बार
मांझा दिल से जोड़ जानेबहार
इसारों पे तेरे आसमा की सैर कर लूं
बस कन्नी तू फिर से दे दिलदार।-
४१(६) # "मदिरा"
मित्र-यारों का संग मिला
मदिरा का ऐसा रंग चढ़ा
शाम हुई कब रात गई
पता हमें कुछ भी न चला
मदिरा के मदमस्त गिलासों में
पी कर खो गए खयालों में।.......
यारों ने घर तो छोड़ दिया
रास्ते का पता पर कुछ न चला
सुबह उठ के खुद को पाया
काम सर पे फिर से मडराया
बेस्वाद बेरंगी दुनिया ने
निराशा से मुझे फिर घेर लिया
लालच नए सपनों का दे कर
जंजीरों से अपने जकड़ लिया।......
दुनियां के हांथ न अब आना है
जाल में ना फस जाना है
रंगीन फ़िर से होना है
सितारों में कहीं खोना है
खुशहाल खुद को रखना है
मदिरा जारी तो रखना है ।........-