सुनो,
इस सन्नाटे में गुम शोर को गौर से सुनो
इसमें कई चीखे सुनाई देगी
रहम मांगते हुए भीखे सुनाई देंगी
सुनो ,
और ज़रा गौर से
सुनाई देगी भूख से बिलखती आवाज
किसी का रूदन, किसी की स्वास
कुछ सिसकियां , कुछ धमकियां
किसी के अंदर सुलगती हुई
धीमी धीमी आग
सहम गए क्या
कितनी उदासी है इस सन्नाटे में
नहीं
ज़रा ठहरो,
इसी सन्नाटे में सुनाई देंगे
कुछ लफ्ज़ प्रेम के
कुछ जागती हुई आस
थोड़ी बेचैनी
कुछ करने कुछ पाने की प्यास।।
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बाहर न निकला करो तुम
पर
घर के अंदर मेरे जिस्म को नोंचा गया
अकेले क्यों जाना है ?
जानते हो
भीड़ के बीच भी खरोंचा गया
रात के पहले वापिस आ जाना
सुरज की रोशनी में भी सहम जाती हूं
छोटे कपड़े न पहना करो
ढके बदन पर भी नज़रे पाती हूं
कहां जाऊं किसे बताऊं
अपनी व्यथा में
कानून को सिर्फ अंधा ही नही
गूंगा और बहरा भी हो गया
जिन्हे रक्षक कहा जाता है
वो प्रशासन भक्षक बन सो गया
कभी बीच सड़क
कभी किस बस में
बंद कमरे में
या अपना ही दफ्तर
कभी घर का अपना कोई
कभी कोई पराया
ये इस देश की बात है
जहां में देवी जैसी पूजी जाती हूं
मां एक सवाल है
क्यूं मुझे पैदा किया
क्यूं नही अपनी कोख से गिराया
बेटी पढ़ाओ बेटी बेटी बढ़ाओ
ये नारा देने वालो
एक बात बताओ
क्या ये देश तुमने बेटियों के रहने लायक बनाया।
शून्या
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ये तमस घना है और सुबह अभी दूर है
हवा भी तेज है और हम खड़े मजबूर है
जिन्हे चौकस रहकर अंधेरा मिटाना था
वो तो स्वयं ही जलते दिए बुझा रहे थे
शायद उन्हें ये पता ही नही की वो
बुझते दियो के साथ कितनी चिता जला रहे थे
पर इन बवंडर और आंधियों के बीच भी हमने
उम्मीद का दिया जलाना अभी छोड़ा नहीं है।।
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गमों का दौर है ये
सब्र कर क्षण खुशियों का भी आयेगा।
वक्त के तराजू पर सब एक सा है
दे रहा है आंसू जो आज
ये वक्त कल मुस्कान भी लौटाएगा।।
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बहुत कुछ बदलने को चाहत रखते हो
तो पहले बदलना होगा ख़ुद को।।
मंजिल पाने की तमन्ना में
लगेगी कई ठोकरें , पर,
उसे पाने की चाहत रखते हो
तो राह पर चलना होगा ख़ुद को।।
इन गम की बिसात ही ऐसी है
आ जाते है बिना बुलाए
खुश रहने की चाहत रखते हो
तो खुशियां ढूंढना होगा ख़ुद को।।
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अफ़वाहों के दम पर जो सवाल करते हो,
जनाब काम बड़ा बेमिसाल करते हो।
ज़रा सही गलत का अंदाज लगा लेते
तुम खामखां यूं बवाल करते हो।।
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