ठहरी हुई ख़्वाहिशों की बंद किताब हूँ मैं,
ज्यादा तो नहीं मगर खुद में ही बेहिसाब हूँ मैं।-
वक़्त ए रुखसत आ गया
दिलफ़िर भी घबराया नहीं ..
उसको हम क्या खोएंगे
जिसको कभी पाया ही नहीं ..-
❤️*ख़ुदा ही जाने क्या कशिश हैं मोहब्बत में*
*एक अनजान हमारा हकदार बन बैठता हैं*
..*❤️-
ठहरी हुई ख़्वाहिशों की बंद किताब हूँ मैं,
ज्यादा तो नहीं मगर खुद में ही बेहिसाब हूँ मैं।-
कभी कुछ लम्हे,
खुद के लिए भी निकालिए, जनाब...
आखिर खुद को चाहना,
कोई गुनाह तो नहीं...-
हजारों कोशिशों के बाद जो मुकम्मल ना हो सकी।
तुम्हारा नाम भी उन ख्वाहिशो में ,मेरी शामिल हैं।।-
अपने अल्फाजों में
मेरा भी जिक्र कर लो,
जरा सा इश्क है चाहो,
तो कुबूल कर लो..
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क्या कशिश थी उस की आँखों में मत पूछो,
मुझ से मेरा दिल लड़ पड़ा, मुझे यही चाहिये !-
हर मोहब्बत मुकदमे की तरह होती हैं...!
न खत्म होती हैं... न बाइज़्ज़त बरी होने देती हैं...-
उम्र ने तलाशी ली, तो जेबों से लम्हे बरामद हुए.....
कुछ ग़म के, कुछ नम थे, कुछ टूटे, कुछ सही सलामत थे......-