वो पुकार कर सो गया
जिसे आना था तारों भारी एक रात लेकर
मुझे याद कर वो खो गया
जिसे ढूंढना था प्रेम हममें कहीं
मुझे बुला कर वो चला गया
जिसे रुकना था मेरे इंतज़ार में-
Follow - unfollow करना तो केवल पहचान बढ़ाने का एक... read more
उसे याद भी नहीं आती मेरी
जिसे याद करती हूँ मैं
वो सोचता भी नहीं मुझे कभी
उसी को दिन रात सोचा करती हूं मैं
बताता भी नहीं मेरे बारे में किसी को
उसकी हर बात किया करती हूँ मैं
देखता नहीं मेरी तरफ़
उसकी हर तस्वीर देखा करती हूँ मैं
पूछता नहीं हाल मेरा
उसका हाल जान लेती हूँ मैं
मेरी राह नहीं आता वो
उसकी राहों पर चला करती हूँ मैं
नमीं नहीं उसकी आँखों में
उसके लिए हर रात भिगोती हूँ मैं
प्यार नहीं उसके दिल में
इकतरफ़ा प्यार निभाती हूँ मैं
रुका नहीं वो मेरे ख़ातिर
आज भी उसके इंतज़ार में हूँ मैं-
जब जी चाहा दिल जोड़ लिया जब जी चाहा मुंह मोड़ लिया
यूं फूलने पचकने में
किसी का दिन खराब नहीं करते
जब मन चाहा आ जाते हैं जब मन चाहा रूठ जाते हैं
यूं आने जाने में
किसी का वक्त बरबाद नहीं करते
कभी प्यार बताकर आ जाना कभी हक़ जताकर हथियाना
यूं अपना बनाकर छोड़ने में
किसी की इज़्ज़त से मज़ाक नहीं करते
कभी प्यार किया कभी ठुकरा दिया
यूं उंगलियों पर नचाकर
किसी की ज़िंदगी से खिलवाड़ नहीं करते-
साल बीत गया याद करते करते
कहां खो गए वो देखते देखते
जैसे रौशनी छोड़ गया सूरज ढलते ढलते
आंखों के सामने रहते हो सोते जागते
दूर निकल जाती हूं यादों में बहते बहते
आंखें सूज आया करती मेरी रोते रोते
मैंने खो दिया आपको आपके आते
रूठे होते गर तो हम सब मनाते
रोज़ लौट आने की उम्मीद लगाते
इतना थक गए बाबा साथ चलते चलते
एक बार आवाज़ तो देते जाते जाते-
बहुत कठिन होता है पिता जैसा पुरुष मिलना
बहुत कठिन है पिता जैसा संयम रखना
बहुत कठिन है पिता जैसा कठोर बनना
बहुत कठिन है पिता जैसे आंसू छुपाना
बहुत कठिन है पिता जैसे कर्तव्य निभाना
बहुत कठिन है पिता जैसा जीवन बिताना
क्योंकि बहुत कठिन है पिता जैसा बन पाना-
जिन्हें ज़रूरत न हो आपकी
उनके पीछे मत भागिए
जो अपनी फुर्सत से याद करें
उनके लिए सपने मत सजाइये
ऐसा भी क्या अनुराग किसी के लिए
जो आपको बैराग दिला दे-
उतर आता है चाँद यूँ जैसे आ जाती हो तुम अकस्मात यादों में
वो भी ऐसे दिखता है जैसे तुम दिखतीं हो मिलने के वादों में...-
खोल दे मतब ऐ ख़ुदा!
के यहाँ इश्क़ के मर्ज़ खूब हैं
आजकल जुदाई का मौसम भी सर्द खूब हैं...-
क़े तेरे मेहन-ओ-करम ही कुछ ऐसे हुए ऐ ज़िन्दगी
न हम गुलफ़ाम हो सके न नीलाम हो सके-
मेरे प्यार की निगहबानी के लिए
जिसे तअ'य्युनात किया था ख़ुदा ने
कम्बख़त वही उसका क़ातिल निकल गया-