Neelam Gupta   (ढलती_साँझ)
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Joined 19 June 2020


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Joined 19 June 2020
27 NOV 2022 AT 22:28

वो पुकार कर सो गया
जिसे आना था तारों भारी एक रात लेकर
मुझे याद कर वो खो गया
जिसे ढूंढना था प्रेम हममें कहीं
मुझे बुला कर वो चला गया
जिसे रुकना था मेरे इंतज़ार में

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24 NOV 2022 AT 20:19

उसे याद भी नहीं आती मेरी
जिसे याद करती हूँ मैं
वो सोचता भी नहीं मुझे कभी
उसी को दिन रात सोचा करती हूं मैं
बताता भी नहीं मेरे बारे में किसी को
उसकी हर बात किया करती हूँ मैं
देखता नहीं मेरी तरफ़
उसकी हर तस्वीर देखा करती हूँ मैं
पूछता नहीं हाल मेरा
उसका हाल जान लेती हूँ मैं
मेरी राह नहीं आता वो
उसकी राहों पर चला करती हूँ मैं
नमीं नहीं उसकी आँखों में
उसके लिए हर रात भिगोती हूँ मैं
प्यार नहीं उसके दिल में
इकतरफ़ा प्यार निभाती हूँ मैं
रुका नहीं वो मेरे ख़ातिर
आज भी उसके इंतज़ार में हूँ मैं

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21 NOV 2022 AT 11:28

जब जी चाहा दिल जोड़ लिया जब जी चाहा मुंह मोड़ लिया
यूं फूलने पचकने में
किसी का दिन खराब नहीं करते
जब मन चाहा आ जाते हैं जब मन चाहा रूठ जाते हैं
यूं आने जाने में
किसी का वक्त बरबाद नहीं करते
कभी प्यार बताकर आ जाना कभी हक़ जताकर हथियाना
यूं अपना बनाकर छोड़ने में
किसी की इज़्ज़त से मज़ाक नहीं करते
कभी प्यार किया कभी ठुकरा दिया
यूं उंगलियों पर नचाकर
किसी की ज़िंदगी से खिलवाड़ नहीं करते

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20 NOV 2022 AT 13:41

साल बीत गया याद करते करते
कहां खो गए वो देखते देखते
जैसे रौशनी छोड़ गया सूरज ढलते ढलते
आंखों के सामने रहते हो सोते जागते
दूर निकल जाती हूं यादों में बहते बहते
आंखें सूज आया करती मेरी रोते रोते
मैंने खो दिया आपको आपके आते
रूठे होते गर तो हम सब मनाते
रोज़ लौट आने की उम्मीद लगाते
इतना थक गए बाबा साथ चलते चलते
एक बार आवाज़ तो देते जाते जाते

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19 NOV 2022 AT 11:54

बहुत कठिन होता है पिता जैसा पुरुष मिलना
बहुत कठिन है पिता जैसा संयम रखना
बहुत कठिन है पिता जैसा कठोर बनना
बहुत कठिन है पिता जैसे आंसू छुपाना
बहुत कठिन है पिता जैसे कर्तव्य निभाना
बहुत कठिन है पिता जैसा जीवन बिताना
क्योंकि बहुत कठिन है पिता जैसा बन पाना

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19 NOV 2022 AT 11:16

जिन्हें ज़रूरत न हो आपकी
उनके पीछे मत भागिए
जो अपनी फुर्सत से याद करें
उनके लिए सपने मत सजाइये
ऐसा भी क्या अनुराग किसी के लिए
जो आपको बैराग दिला दे

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17 NOV 2022 AT 23:14

उतर आता है चाँद यूँ जैसे आ जाती हो तुम अकस्मात यादों में
वो भी ऐसे दिखता है जैसे तुम दिखतीं हो मिलने के वादों में...

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7 NOV 2022 AT 20:49

खोल दे मतब ऐ ख़ुदा!
के यहाँ इश्क़ के मर्ज़ खूब हैं
आजकल जुदाई का मौसम भी सर्द खूब हैं...

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1 NOV 2022 AT 20:13

क़े तेरे मेहन-ओ-करम ही कुछ ऐसे हुए ऐ ज़िन्दगी
न हम गुलफ़ाम हो सके न नीलाम हो सके

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29 OCT 2022 AT 20:45

मेरे प्यार की निगहबानी के लिए
जिसे तअ'य्युनात किया था ख़ुदा ने
कम्बख़त वही उसका क़ातिल निकल गया

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