Nazmebayaan   (#Nazmebayaan)
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Joined 2 March 2020


Joined 2 March 2020
9 DEC 2024 AT 23:47

दुनिया में एक ही लड़ाई सदियों से हैं,
अमीरी और गरीबी की.....

बाकी जितने भी मुद्दे हैं, सब चोंचले हैं,
अपने अपने राजनीति की.....

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3 DEC 2024 AT 17:45

कभी कभी ऐसा होता हैं सुना था मैंने,
जैसे तुझसे दिल लगा नहीं सोचा था हमनें।

एक चांद और एक बादल सी कहानी बन गई,
कभी पास, कभी दूर, लेकिन एक आसमानी बन गई।

तू मेरा हैं, मैं तेरा हूं, लेकिन चुपके चुपके,
आखिर तक तेरा रहूंगा, आखिरी सांस ही बन गई।

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2 DEC 2024 AT 22:42

कभी आस्मां में बैठ के, सितारे चुन रहे थे जी,
कभी चांद बनके बादलों से हम खेल रहे थे जी,

कभी वक्त मेरा भी मोहब्बत का था,
कभी रात दिन ख्वाबों को ओढ़कर, हम जी रहे थे जी।

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1 MAY 2024 AT 21:15

दिल के रंग में, तेरे संग में, एक ख्वाब हमारा हैं।
एक इंतजार का, मेरे प्यार का, एक जवाब तुम्हारा हैं।

जीवन क्या, मरण क्या, कोई जन्म क्या, जिस्म क्या,
रूह रत्न में मौजूद रौशनी को बस चाह तुम्हारा हैं।

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15 APR 2024 AT 23:50

आज मुझसे बेरुखी जो की जा रही हैं।
कल मुझे मिलने को बुलाया जाएगा।

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15 APR 2024 AT 23:35

जीवन के अभिषेक तुम।
अनेकों में हो एक तुम।

मेरे छोटे भाई सदा आगे बढ़ो,
यूहीं लिए धैर्य, शौर्य, विवेक तुम।

जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं भाई
💐🎉🎂🎇🍫🍾👑

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28 JAN 2024 AT 0:52

देते हैं मत अपने अपने मकसद से लेकिन,
एक नेता के मकसद में जाके मत फंस रहे हैं।

कभी इधर तो कभी उधर, अतिचंचल मन डगर,
मुख्यमंत्री की दो नावों की सवारी सब देख रहे हैं।

पक्ष विपक्ष में बटी और लड़ती बिल्ली सी जानता,
और नेता बंदर सा अपना अपना रोटी सेंक रहे हैं।

हैरान हूं कि बिहारी ही बिहार पर हंस रहे हैं।
लोक ही अपने लोकतंत्र पर तंज कस रहे हैं।

इससे अच्छा तो था राजतंत्र ही,
कम से कम आज भी हम राम को तो पूज रहे हैं।

ये किस दर्पण में जनता की सरकार हैं भला,
सभी नेता अपने दर्पण में कुर्सी को निरेख रहे हैं।

नहीं कोई क्यों ऐसा कहता, बिहार के लिए कुर्सी छोड़ता हूं।
मैं इस गठबंधन को जनता के सम्मान में तोड़ता हूं।।

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26 JAN 2024 AT 4:04

पता चला हैं तेरे घर में खुशखबरी आने को हैं।
दुआ हमारी भी हैं कि वो सितारा जग को रौशन करें।

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24 JAN 2024 AT 4:54

कई दिन, कई रात हुए तुमसे बातें हुए।
लगता हैं अब जाके तुम गैर हुए।

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23 JAN 2024 AT 13:32

किसी बड़े पेड़ के साएं में बैठ जाने से,
आसमान नहीं छू लोगे तुम।
ये जमीन ये आसमान सिर्फ इतिहास को याद रखता हैं।

और इतिहास खुद के कर्मों से लिखों तुम।
दूसरों के सामने झुकने से इज्जत कहां मिलता हैं।

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