Nazish Ali   (Khyal-e-nazish)
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Joined 6 April 2019


Joined 6 April 2019
12 MAY 2021 AT 11:36

एक सिर्फ हमें ही छोड़ सब अहमियत रखते है,
दो लफ्ज़ो के बोल ऐसी ही सलाहियत रखते है।

न ख़ौफ़ रहा दिल में न उम्मीद रही मंज़िल की,
चालो माफ़ किया खुद ऐसी मासुमियत रखते है।

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9 MAY 2021 AT 13:43

एक उम्मीद बंधी मेरे दिल में तेरे साथ को
मुन्तज़िर है,
बे-अलफ़ाज़ ज़ुबान की रिवायत एहसास-इ-क़ल्ब से हाज़िर है।

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23 SEP 2020 AT 12:43

एक शख्स पर्दानशीं , हम सब में वो है,
आँखों से ओझल है पर हर क़ल्ब में वो है|

हौसले बुलंद रहे इतने उलझन भी सुलझ जाये,
साबित क़दम हमेशा, खुद की तलब में वो है|

सितारों की खोज में खुद चमकता तारा बन गया,
बंदिशों को तोड़, आज सारे वज़ाहत में वो है|

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2 APR 2020 AT 10:46

ये जमाना भी अब आ गया किसी और दौर का,
खौफ-ज़दा चारो तरफ है इंसानियत के शोर का,

अब आलम कुछ इस क़दर है पुरे जन शहर का,
खतरे का इलाज है सबसे खतरे होने के होड़ का,

निकल पड़े, चलो अब अपने अपने घर की तरफ,
हो रहा है जहाँ इंतजाम-ए-हिफाज़त बहुत ज़ोर का,

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9 MAR 2020 AT 16:34

रंगो की सौगात, ज़िन्दगी में बहार, बसंती हवा बहाने लाये है,
सारे गिले शिकवे भूलकर खुशियों को गले लगाने आये है,

रंगपंचमी का महीना, फागुन के दिन और पूर्णिमा की राग,
नयी उमंगो का साथ और वसंत फिर से हमें हसाने आये है,

कोई धर्म नही होता रंगों का, सब मिल कर श्वेत बन जाओ,
शांति के प्रतीक, हर्ष ओ उल्लास की नदी से जताने आये है,

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26 JAN 2020 AT 15:27

सल्तनत ए हिन्द की जम्हूरियत का त्योहार आया है,
तिरंगे की मान संग प्रजा के खातिर सौगात लाया है,

खिले हैं बागों में गुल कुछ इस तरह से आज के रोज,
जैसे बरसों की याद ओ शहादातों का बहार आया है,

कर गए कुरबानी जो सुबह ओ शाम इस सरजमीं पर,
उनके ही अक्स ए जद ओ जहद का सबूत लाया है,



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13 JAN 2020 AT 23:25

कोशिशें हज़ार हैं यहां और मंज़िल एक,
बसर ए दिन परवाज़ है और साहिल एक,

हारे हुए लफ्ज़ भी एक रोज़ जीत जाएंगे,
तरन्नम ए हिमाकत पे कर गई फासिल एक,

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5 SEP 2019 AT 20:07

हमारी तक़दीर बनाने को वो आमादा होते हैं
ख़त्म हो जाए लब्ज़ हमारे तो वो निदा होते हैं,

स्याह कागज़ से माफ़िक़ तक़दीर के वो पन्ने,
इनके स्याही-ए-नसीहत से गुमशुदा होते हैं,

कुछ लम्हों में समेत देते है वो ज़िंदगी के पहलु,
वो इल्म-ए-फलसफे, रहनुमाई में जावेदा होते हैं,


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31 JUL 2019 AT 18:21

रेत पे स्याह से लिखा है मैंने ,
पिघले माँ सा फ़िक़्ह है तुमने ,
जज़बात जो राख में उडे पड़े है ,
हर राफ्ता युही पिरो रखा है मैंने ।

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3 JUL 2019 AT 23:37

बहुत कुछ हो कर भी कुछ नही है हमारे,
बेनाम सही एक गहरे रिस्ते से है तुम्हारे।

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