प्रेम ही तो कर रही कोई दंगा फसाद तो नहीं कर रही
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बिना किसी पुरूष के......
बोझिल पलों में जब मैं ख़ुद को एकाकी पाती
तब मेरे भीतर एक मां जन्म लेती
हर बार पहले से कहीं अधिक ममत्व के साथ
इन पलों को महसूस करती
अपनी कल्पनाओं में एक मां को जन्म देती
बिना किसी पुरुष के
मेरी अपनी कल्पना
मेरी पीड़ा से प्रस्फुटित
मातृत्व
और तब मैं पत्नी प्रेमिका बनने से पहले बन जाती मां
कल्पना के बाहर की दुनिया में
विचारों से जन्में नाप लेते
समाज के बनाए मापदंडों की दूरी
पहली भेंट में ही पहचान लेती
अपने मनगढंत स्वरूप को
किंतु नहीं तोड़ पाती समाज के दकियानूसी नियमों को
नहीं कह पाती
मैं देवकी,यशोदा से भिन्न हूं
तुम मेरे अध्यारोप से जन्में
हम दोनों एक दूजे के पूरक
समुद्र की तरह शांत मन के
अंदर हिलोरें लेता रहता मातृत्व
सुनो मैं तुम्हारे विचारों से उपजी तुम्हारी बड़ी बहन हूं
बड़ी बहन भी तो मां समान होती है-
गले से लगाकर उसे आज बताना कितना प्यार है
उसकी दुनिया का शायद तुम एक हिस्सा हो लेकिन
वो तुम्हारी पूरी दुनिया है 😝😂-
जरा सी सर्द हवा है , बरसात तो नहीं है
माना वो दिल में है लेकिन पास तो नहीं है ....
ना जाने अब क्या हाल होगा इस मोहब्बत के सफर का,
यह प्यार का सप्ताह है पूरा साल तो नहीं है ....
तो क्या हुआ अगर तुम नहीं हो इस प्यार के सप्ताह में
हमारा प्यार किसी वैलेंटाइन डे का मोहताज तो नहीं है
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तुझे कभी टूटने नहीं दूँगी
मैं जानती हूँ तुम्हें कोई
और नहीं तोड़ सकता क्योंकि
वो मैं ही हूँ जो
तुम्हारी ताकत और
तुम्हारी कमजोरी भी है
ठीक वैसे हीं जैसे
तुम थे मेरे लिए
वादा रहा तुमसे
मैं तुम्हें कभी भी
वैसे नहीं टूटने दूँगी जैसे
तुमने मुझे तोड़ा था
वादा रहा तुमसे-
लगा दिया है चिटकनी
अपने ख्वाबों को
कि कल सोचूंगी
पक्का
सोचती हूँ
उनको पूरा करने में
कोई छूट नहीं जाए
कहीं रूठ ना जाए
परिवार का कोई सदस्य
रिस्तों मे मिठास बनी रहे इसीलिए
लगा दिया है चिटकनी
अपने ख्वाबों को
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हाँ पहले हम वाकिफ ना थे
इस दुनिया बेगानी से
अब लगता है बचपन ही अच्छा था
इस जवानी से-
मेरा तुम तक पहुंचना
और वही ठहर जाना
तुम्हें ही पढना
तुम्हें ही लिखना
ज़ब भी बात प्रेम की आये तो
तुम्हारा नाम लेना
तुम्हारा मेरी कविता का शब्द बनना
फिर वाक्य बनना
और अब पूरी कविता
खुशबू का पीछा करते करते
मेरा तुम तक पहुंचना और
उस खुशबू को हमेशा के लिए
अपने अंदर बसा लेना-