मन होता हैं,
बचपन में फिर लौट जाने का ।
जहा बस सबका प्यार और दुलार था,
जहा नफरत का कोई निशान न था।
मन होता है,
मां के आंचल में फिर छुप जाने का ,
जहा जन्नत सा सुकून था,
जहा से कुछ खोने का डर न था।
मन होता है,
पापा के कंधे पे फिर से बैठ जाने का ,
जहा से सारा जहां ही खूबसूरत था,
जहा से कभी गिरने का डर न था।
हां,
मन होता है उस बचपन में लौट जाने का ,
क्योंकि....
अब तो न मां के आंचल सा सुकून है कहीं,
न पापा के कंधे सा सहारा।
अब तो पाव तले सिर्फ धूल है,
जिसमे मिलने का डर रहता है।
सर पे आसमां का वो साया है,
जिसमे खोने का डर हर पल रहता है।
बस इसलिए,
मन होता है बचपन में फिर लौट जाने का।।
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