एक कौआ,दूसरे कौआ से कोयल सी मधुर आवाज चाहता है,इसीलिए कांव कांव करता है😀
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शून्य से शून्य तक, सफर ये जिंदगी,
कई अंक पीछे से आए, मान बढ़ा गए,
फिर हमसे आगे बढ़ कर,जिंदगी के गणित को कचरा कर गए,
हम शून्य के शून्य,उस कचरे के बोझ तले, दब कर,तिलमिलाए,रोए,बहुत छटपटाए,
फिर कचरे से बाहर निकल,
किसी नए अंक की तलाश में,तन्हा जीवन बिताए।
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हालात के साथ बदलते गए,
अपनों को बढ़ाने में,स्वयं फिसलते गए।
विश्वास के साथ दिल भी टूट गए,
हमारी चुप्पी को ,कमजोरी समझ गए।
गरजने वाले चुप हुए,
वो क्या से क्या कह गए।
बना ली दूरियां सबसे,
बोले,पहले जैसे हम नहीं रहे।
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गिरगिटों के शहर में,रंग,रूप,प्यार, व्यवहार पर। मत जाना।
न जाने किस घड़ी,किस पल, किसका रंग बदल जाए।
जरूरतों के अनुरूप ,बात करने का ढंग बदल जाए।
आज पूरा शहर जिसके दीदार को तरसे,कल सामने आने पर नजर बदल जाए।
मत कर इतना अभिमान,मत कर नफरतों की कमाई,क्या पता कब किसकी तकदीर बदल जाए।-
विद्यालय,विश्वविद्यालय गए जरूर,
पर दुःख है कि पशु,पंक्षी से भी एक कदम आगे न गए हुजूर।-
अपने आप को हम,जब समझने लगे।
लोग हमसे किनारा,करने लगे।
अब चंद लोग हीं बचे हैं,अपनी जद में।
क्या आप भी एक हो?उनमें।🙏।-
तूफान में कस्ती,घमंड में हस्ती,
नहीं टिकती।
गैर की अच्छाई,अपनी बुराई,
नहीं दिखती।-