रात, तन्हाइयों का सफर थी।
सहर, बर्बादियों के कहर सी।-
मुक़म्मल ना सही
इश्क़ रुबरू तो रहने दे।
अधूरी ही सही
कुछ ज़ुस्तजू तो रहने दे।
तेरी आग़ोश में,
डूब ना सके तो क्या हुआ?
यादों के तिनकों संग
मेरी हर आरज़ू तो बहने दे।-
कितना भी बुला लो,
बिछड़ा यार नहीं आता।
कितना भी भूला लो,
मग़र करार नहीं आता।
और वो चली गई
किसी गाड़ी वाले के साथ,
मेरी तनख्वा साइकिल की है,
इतने में प्यार नहीं आता।-
कांपती सर्द रातों में, ओस तले
सुलगती अंगीठी, तेरे संग बैठना है।
कई गुज़री बातें बतानी हैं,
फिर एक नया सा ख़्वाब देखना है।
वो सुनी-सुनाई सी धुन छेड़नी है,
संग बिताया वक़्त, कागज़ पर उकेरना है।
चांदनी के साथ चलते-चलते
सुबह की लाली को आँखों में समेटना है।
कांपती सर्द रातों में, ओस तले
सुलगती अंगीठी, फिर तेरे संग बैठना है।
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इस मिट्टी से तुझ को मिला जनम
कुछ बनना है, तो माटी का ख़्वाब बनो।
ग़र हिन्दू जन्मों तो स्वामी विवेकनाद
मुसलमान जन्मों तो डॉक्टर कलाम बनो।-
हम रोज़ मिलते हैं,
तुम कुछ नहीं कहते।
तुम कुछ नहीं कहते,
तो हम कुछ नहीं कहते।
कहते तो हो,
तुम हमसे ज़माने भर की बातें,
मग़र जो दिल की बातें हैं
कहो! वो क्यों नहीं कहते?-
दम सा घुटता है, अब साँस भी आती नहीं...
किसी भीड़ का हिस्सा नहीं मैं, तनहा हूँ शायद।-
Woh chandni raaton ka khwaab thi,
Main tapti dopehari ka sooraj...
Hum jab bhi mile to, khilti roohani subah hui
ya phir dhalti suhani shaam.-
Yeh sukoon to tumhara, magar toofan kiska hua?
Yeh zameen bhi tumhari, magar asmaan kiska hua?-
ढलती जुल्फ़ों की लटें सुलझा रही है वो भी,
मैं यूँ ही बेख़याली में मुस्कुरा रहा हूँ...
या मुझे देखकर मुस्कुरा रही है वो भी।-