मै चाँद रोज तकता रहा, वो चाँद खुद मे खिलता रहा
मै तकता रहा और खो बैठा, वो चाँद था बस खामोश रहा
जज्बातो के जाल मे एक बार मै फिर से उलझा हू
वो तो चाँद है सबका ही, वो बस खुद मे मस्त रहा
हर सोच मेरी, हर ख्वाब मेरा मै उससे जोडा करता हू
उम्मीदे पाले बैठा मै बस जिक्र से महका करता हू
कितना कुछ है कहने को पर रहता हु मै चुप चुप सा
जब शब्दो को माने न मिले तो ख़ामोश ही रहना है भला
मै हसमुख सा, मै झगड़ालू ,मै प्रेम व्यक्त करने वाला
अब रहता हु मै चुप सा , मै बोलु ना अपनी व्यथा
इतना विपरीत मै खुद से हु, है कुछ नही बस असर तेरा।
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