क्या पाकर मैंने क्या खो दिया था ये सोचकर ही बस मैं रो दिया था
वो मिला तो था कुछ पल के लिए बस उन्हीं पलों में मैं जी लिया था-
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मिलना उससे फिर कुछ इस तरह से हुआ
मैंने देखा वो रोया और ख़ाक मैं हुआ
बहुत मिन्नतें की उसने हमसे बात करने की
उस रोज इस कदर जो ख़ामोश मैं हुआ-
उम्मीदों का अब मर जाना अच्छा है
अब बेपरवाह हो जाना अच्छा है
जिनसे वफ़ा की चाहत किए बैठे थे
उनका अब बेवफ़ा हो जाना अच्छा है-
ये गुल शाखों पे यूँही आबाद रहेंगे
हम दोनों मिलते और बिछड़ते रहेंगे
कभी तू ठहर जाएगा बनकर बूँद ओस की
तो कभी हम पतझड़ से बिखरते रहेंगे-
नजदीक उसे बुलाते हो फ़िर हिज़्र की रात करते हो
दिल को लगाते हो फ़िर उससे ही बेदिली करते हो
करते हो उसको चाह कर तुम आबाद बेहद;
फ़िर ठुकरा कर उसको सभी तरह से बर्बाद करते हो-
उसने सोचा तो होगा एक बार जुदा होते हुए;
मिलेंगे फ़िर कभी अगर तो बातें मुक्कमल होंगी-
तेरे शहर में तेरी गली में और तेरे घर के भी कितने पास;
देख इतना पास होकर भी कितना दूर हूँ तुझसे मेरे यार-
मैं उससे जुदा हो कर अब तलक जिंदा हूँ;
बस यही एक ग़म मुझे परेशाँ कर रहा है-
मुझे बाद उसके सबकुछ तो हुआ मगर प्यार नहीं हुआ
उससे बिछड़ने के बाद मैं किसी का तलबगार नहीं हुआ
हज़ारों चेहरे यूँ तो नज़र में आए दिन और रात मेरे;
बाखुदा उस एक जैसा किसी और का दीदार नहीं हुआ-
अश्क़,आज़ार, तन्हाई, रुसवाई, अज़िय्यत और ना जाने क्या क्या;
सब कुछ तो मिल जाता है इश्क़ में फ़कत उस एक शख़्स के-