कहाँ खड़े किसे ढूंढ रहे हो ? खुद ही खड़े खुद को खोज रहे हो एक चाँद तले एक नदी के ऊपर खुले आसमान के नीचे एक नदी का ऊफान देखकर अपने अंदर का इंसान ढूंढ रहे हो ? कहाँ खड़े किसे ढूंढ रहे हो....
क्या लिखूं..... एक नज्म, एक कविता या फिर एक ख्वाब लिखूं एक चांद,एक सड़क, एक मदमस्त हुई नदी का उफान लिखूं जाती किसी खाली सड़क के हर मोड़ पर आता एक तूफान लिखूं किसी बीती गली की एक सोंधी खुशबू लिखूं या किसी एक सड़क की चमक लिखूं किसी नदी का संगम लिखूं या जो न हो सकी किसी सागर की एक ऐसी नदी का नाम लिखूं एक कलम से कितनी कहानियां बेशुमार लिखूं इस अंधियारे मे आंख बंद करू और फिर कोई ख्वाब बुनु और या फिर एक गहरी सांस भर एक नया आयाम लिखूं।
तुम मेरे जिस वक्त पर मुझे आसानी से नजरअंदाज करते हो अपना सब देख कर मुझे बहलाकर कि रहता हू जहन मे ऐसी बातें लाख करते हो एक रोज सोचोगे मुझे तुम मेरी तरह वक्त होगा हर कोई होगा पर दिखेगा कुछ भी नही मेरी तरह तुम्हारी नजर होगी समय पर ताकोगी कभी वक्त को मेरी तरह मिनट सेकंड कब घंटे से लगने लगेंगे तब एक रोज सोचोगी मेरी तरह यकीन मानो बहुत चाहा पर मैं न बन पाया तुम्हारे जैसा पर तुम जरूर हो जाओगी एक रोज मेरी तरह
एक रोज तुम नही आये दो रोज तुम नही आये एक दो दिन ही बीते और फिर उस वक्त किसी रोज तुम नही आये क्या सच मे इतना आसान होता है बदल जाना? फिर एक रोज जहन मे रहने की वो बाते बाते हो गई साथ बिताई इतनी वो झूठी सारी राते हो गई मै मुफलिसी आखों से तकता रहता वक्त को तुम हो जाओगे मेरे शायद ये झूठी उम्मीदे बस उम्मीदे रह गई
Ki katoge jo ek raat mujh jaisi Tmra sona mar jaega.. Sui ghadi ki dekhegi tumko Or samay ka chalna bnd ho jaega Raat ki dabi awaj ki siskiyo ko phchanoge meri Tb Aas pas hokr bhi koi najar nhi aaega Karta rha har waqt agah tumhe Rok lo ye waqt fir nikal jaega Mera hr waqt rhna koi asan nhi Insan hu abtlk kisi hisse ki masan nhi Or tb Mere andr uthta ubal bhi smjh ayega Jo rah jaega fr malal bhi samjh ayega Mujhe badlne ki koshis me jo tum lage ho barso se Kisi roj kisi biti raat mai bhi tum jaisa kho jaunga Ek din mai bhi tum jaisa ho jaunga... Ek din mai bhi tum jaisa ho jaunga...
कभी कभी आपकी समझ आपके आस पास होने वाली चीजो से छोटी पड़ जाती है, हम उन चीजो को वास्तविकता मे ढाल नही पाते, ऐसा भी हो सकता है क्या, की सोच हमे थामे रहती है, हमे निढाल करती है क्यू, कैसे, के प्रश्न जिनके उत्तर तो है, पर हम स्वीकार करना नही चाहते, क्यूंकि वो हमारी समझ से कही दूर है, और जब वास्तविकता और समझ का मेल नही होता तो ऐसी स्थित मे आपको नजर आता है एक मात्र एकांतवास।
कितना आसान है बदल जाना चंद दूरी, चंद बदलाव, चंद नये चेहरे, कठिन है तो मौन रहना, शोर को मन मे धारण रखना, एक चुप्पी अधर पर रख, किसी जिद का सब्र मे बदलना, एक अशांत का शांत होना, और किसी समुन्दर का तालाब होना कितना आसान है बदल जाना कठिन है तो शांत रहकर एक सा रहना।।
एक जीवन की अभिलाषा मे, एक जीवन मारे बैठे है हम कितना कुछ पाने की खातिर खुद को हारे बैठे है।। कि कितना बचे हम खुद मे खुद के, बैठा एक दिन देखने को रात बीत गई सुबह हो गई कुछ मिला नही है गिनने को नयन सेज पर भोर लिए फिर कुछ लिखने बैठे है एक जीवन की अभिलाषा मे, एक जीवन मारे बैठे है हम कितना कुछ पाने की खातिर खुद को हारे बैठे है।। इस दुनिया के मेले मे मिलते लाख खिलौने है, किसी एक जीत के चक्कर मे रह कर हमारे एक न होने है स्वयं का सूरज, स्वयं का चांद स्वयं बनाये बैठे है दिन के खुले आसमान मे रात सा टिमटिमाये बैठे है, एक जीवन की अभिलाषा मे, एक जीवन मारे बैठे है हम कितना कुछ पाने की खातिर खुद को हारे बैठे है।।
बहुत सम्भाला है तुमको अब बारी तुम्हारी है हाथ रोक कर तुम्हे खर्च किया है मैने अबतक, ऐ जिन्दगी तुम्ही देखो अब बह जाने की तैयारी है। क्यू, कैसे, क्या होगा ये सब कुछ पता नही है, बहुत बना जबाब सबका अब प्रश्नों की बारी है, ऐ जिन्दगी तुम्ही देखो अब बह जाने की तैयारी है।