एक तूफां सा उठा है आज फिर से सीने में,
टूटी-बिखरी यादों के सैलाब में दिल डूब रहा है,
ऊपर बादल भी कौंधते जज़्बातों तले फट पड़ा है,
इन तेज़ हवाओं में भी 'अनकही' बातों का शोर है,
हर तरफ़ उखड़े दरख़्तों की 'लाशें' बिखरी हैं,
कभी आब-ए-इश्क़ से सींचा था जिनको,
हर एक मकां, वो हर आशियाँ,
जिनमें तेरी कुछ खूबसूरत यादों का बसेरा था,
वो सब आज इस सैलाब में डूबा रहा है....और मैं भी !
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