इश्क़ तो हुआ है हमने उनसे बेशक,
पर कुछ दिनों से दूरियाँ कुछ बढ़ सी गई हैं।
हसरत भरी निगाहों से हम उन्हें तकते रहते हैं,
और वो हैं कि बस मुस्कुरा भर देते हैं।
ये आँख मिचौली का सिलसिला न जाने कब शुरू हुआ,
पहले तो हम यूँ नज़रें न चुराया करते थे।
देखते ही उन्हें गज भर दूर से,
हम होंठों से लगा लेने को मचल जाया करते थे।
अब तो एक अरसा हो गया हमें यूँ क़रीब आए,
क्या करें अब हमारे बीच ‘वो’ बात नहीं रही।
हालात कुछ ऐसे हैं कि उन्हें छूना तो दूर,
जी भर देखने की भी इजाज़त नहीं रही।
अब हम उन्हें मुस्कुराता देख मुँह फेर लेते हैं,
वो भी जी भर हमें चिढ़ा कर ख़ूब मज़ा लेते हैं।
पर यह नज़रअंदाजी का खेल अब हमें अच्छा नहीं लगता,
भाड़ में जाए डाइयटिंग, चलो आज हम अपने बिसरे हुए प्यार,
यानी कि ‘गाजर के हलवे’ को होंठों से लगा ही लेते हैं।
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