कमरे से बाहर निकल लो
ज़रा शाम से मिल लो
मन को थोड़ा टटोल लो
मिठास चाय में घोल लो
बारिश से भीगे सूख रहे है
पेड़ ऐसे झूम रहे है
बेल लताये चढ़ रही है
बालकनी से लिपट रही है
डूबते सूरज का प्रकाश देखो
और छटा हुआ आकाश देखो।
एक-एक किरण को देखो
किरण में उड़ती रज को देखो।।
दूर होते है गिले शाम में
जब चाय पर मिले शाम में
अपने आप की आवाज़ सुन लो
एक चाय पर ख्वाब बुन लो।
देखते देखते चांद आ गया
ये कैसा पैगाम आ गया
मेरा मन भरा न था
कमरे पर चलने का आव्हान आ गया।
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