हर तरफ़ शोर और वो मौन थी,, चांद से चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आंखों में तारों सी चमक मासुमियत भरा चेहरा उसपे वो छोटी सी बिंदी हाय ! किसी अप्सरा की तरह थी वो
अनजान शहर की वो अजनबी,, ना जाने वो कौन थी,,
मैं पूरे रास्ते उसके ख्यालों में था उसके चेहरे उसकी अदा को बस लिख रहा था महसूस कर रहा था जिसे आज तक कभी देखा ही नहीं ये दिल आखिर उसके लिए कैसे धड़का
शहर बदले वक्त भी बदला रब का दर फिर खुला फिर एक नए शहर में वही मिली इस बार आंखों से आंखे मिली एक छोटी सी मुलाकात हुई उस अजनबी की अब पहचान हुई — % &
अंदर है समन्दर है खामोश सा बवंडर है,, धोखे का खंजर है दर्द का मंज़र है,, हो चुका खंडहर है दिल अभी बंजर है,, ना कोई रहबर है ख़्वाब भी बेघर है,, ख़ामोश रहूं बेहतर है जो हुआ मुकदर है.......