विरक्त होकर इस दुनिया से बैठा था एक कोने में , क्या करू मैं सोचने की भी क्षमता नहीं बची थी मेरे में, क्या हुआ कैसे हुआ क्यों हुआ बस यही घूम रहा था मेरे मन में , क्या मैं ही था इन सब के पीछे या तुम थे इस साजिश में । दूर हो गया था मैं सबसे ना चाहते हुए भी , सिर्फ लोग ही नही भौतिक रूप से हर चीज से, जब बनने की उमर में हाथ में कलम लिखना चाहती थी सफलता की कहानी , मैं लिख रहा था विरक्त होने की अनसुनी कहानी, रोने के लिए नेत्रों में अश्रु नहीं थे , बोलने के लिए शब्द नही थे , मिलने के लिए लोग नही थे, क्या करू या ना करूं इस उधेनबुन में उलझा हुआ बैठा थे में एक कोने में विरक्त होकर सपनो से बैठा था मैं आंखों में अनकही कहानी लेके एक कोने में ।
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