Naveen Mahal  
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Joined 28 April 2020


Joined 28 April 2020
24 APR AT 19:35

ज़िन्दगी को पढ़ते-पढ़ते
मैं जाने कब किताब हो गई 

हर एक तारीख हर एक दिन दर्ज हैं मुझमें 
मैं दिन, सप्ताह, महीना, साल हो गई

ढ़लता वक़्त भी न जो मिटा सके 
मैं वो गहरी स्याही हो गई 

ज़िन्दगी को पढ़ते-पढ़ते
मैं जाने कब किताब हो गई।

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21 APR AT 22:16

साधारण से ही हैं 
तेरे दर्द भी और मेरे दर्द भी 

असाधारण हैं बस पीड़ा इनकी 

न सोचो तो कुछ भी नहीं 
और जो कभी सोच लिया

तो फिर नज़र आती हैं 
बहुत गहराई तक फैली जड़ें इनकी...

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18 APR AT 22:29

a dreamer person




am sleepless person

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18 APR AT 22:10

कभी-कभी इन तन्हा ख़ाली रातों में
सुकून से सोने के लिए नींद की नहीं

आंसूओं की ज़रूरत पड़ती है...

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15 APR AT 21:32

ये रातें हर रोज़ दोहरातीं हैं
मेरे अतीत की कुछ कहानियां...

मैं‌ रातों को अक्सर ही सोता हूं
अपनी आंखें नम कर के...

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11 APR AT 21:31

ये चांद भी इतना दूर क्यों है
कुछ मुझ-सा मजबूर क्यों हैं

हमारी तो ईद ही है बस
उनके ही दीदार से

मगर इतने बादलों में यूं
उनको ढूंढना इतना मुश्किल क्यों है 

ये चांद भी इतना दूर क्यों है
कुछ मुझ-सा मजबूर क्यों हैं।

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6 APR AT 21:10

इश्क़ होता गया
वो दूर जितना भी गया
ये दर्द-ए-जुदाई उसकी
मैं ख़मोशी से सहता गया

जब वो इन आंखों को कहीं न आया नज़र
मैं इतना रोया कि मेरा दामन भीग गया

ये सांसें भी मेरी अब उसकी दी अमानत है
मैं जितना भी भरता गया उसका ही कर्ज़दार बनता गया

अब नींदें भी मेरी रातों से दूर हो गईं
मैं जागता रहा और उसकी ही यादों में रात काटता गया

इश्क़ होता गया
वो दूर जितना भी गया
इश्क़ होता गया...

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5 APR AT 20:36

वक़्त को बांधें रखा है अपनी कलाई पर लेकिन 
फिर भी अक्सर वक़्त की कुछ कमी-सी रहती है...

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4 APR AT 22:02

एक वक़्त था जब लगता था कि हम सब एक दिन बदल जायेंगे
और आज देखता हूं तो ज़िन्दगी ही बदली हुई-सी नज़र आती

काश कभी ख़ुद की जगह ज़िन्दगी को रखकर देखता
तो शायद ये ज़िन्दगी कुछ पहले जैसी नज़र आती

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26 MAR AT 20:23

वो चाह कर भी मेरे साथ नहीं ठहर सकता 
कि कुछ इतना आगे निकलकर आ गया है वो 

भला मुमकिन ही कहां हुआ है इस वक़्त को वापस पीछे मोड़ पाना...

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