ज़िन्दगी को पढ़ते-पढ़ते मैं जाने कब किताब हो गई हर एक तारीख हर एक दिन दर्ज हैं मुझमें मैं दिन, सप्ताह, महीना, साल हो गईढ़लता वक़्त भी न जो मिटा सके मैं वो गहरी स्याही हो गई ज़िन्दगी को पढ़ते-पढ़ते मैं जाने कब किताब हो गई। -
ज़िन्दगी को पढ़ते-पढ़ते मैं जाने कब किताब हो गई हर एक तारीख हर एक दिन दर्ज हैं मुझमें मैं दिन, सप्ताह, महीना, साल हो गईढ़लता वक़्त भी न जो मिटा सके मैं वो गहरी स्याही हो गई ज़िन्दगी को पढ़ते-पढ़ते मैं जाने कब किताब हो गई।
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साधारण से ही हैं तेरे दर्द भी और मेरे दर्द भी असाधारण हैं बस पीड़ा इनकी न सोचो तो कुछ भी नहीं और जो कभी सोच लियातो फिर नज़र आती हैं बहुत गहराई तक फैली जड़ें इनकी... -
साधारण से ही हैं तेरे दर्द भी और मेरे दर्द भी असाधारण हैं बस पीड़ा इनकी न सोचो तो कुछ भी नहीं और जो कभी सोच लियातो फिर नज़र आती हैं बहुत गहराई तक फैली जड़ें इनकी...
a dreamer personam sleepless person -
a dreamer personam sleepless person
कभी-कभी इन तन्हा ख़ाली रातों में सुकून से सोने के लिए नींद की नहीं आंसूओं की ज़रूरत पड़ती है... -
कभी-कभी इन तन्हा ख़ाली रातों में सुकून से सोने के लिए नींद की नहीं आंसूओं की ज़रूरत पड़ती है...
ये रातें हर रोज़ दोहरातीं हैं मेरे अतीत की कुछ कहानियां...मैं रातों को अक्सर ही सोता हूं अपनी आंखें नम कर के... -
ये रातें हर रोज़ दोहरातीं हैं मेरे अतीत की कुछ कहानियां...मैं रातों को अक्सर ही सोता हूं अपनी आंखें नम कर के...
ये चांद भी इतना दूर क्यों है कुछ मुझ-सा मजबूर क्यों हैं हमारी तो ईद ही है बस उनके ही दीदार से मगर इतने बादलों में यूं उनको ढूंढना इतना मुश्किल क्यों है ये चांद भी इतना दूर क्यों हैकुछ मुझ-सा मजबूर क्यों हैं। -
ये चांद भी इतना दूर क्यों है कुछ मुझ-सा मजबूर क्यों हैं हमारी तो ईद ही है बस उनके ही दीदार से मगर इतने बादलों में यूं उनको ढूंढना इतना मुश्किल क्यों है ये चांद भी इतना दूर क्यों हैकुछ मुझ-सा मजबूर क्यों हैं।
इश्क़ होता गयावो दूर जितना भी गयाये दर्द-ए-जुदाई उसकी मैं ख़मोशी से सहता गया जब वो इन आंखों को कहीं न आया नज़रमैं इतना रोया कि मेरा दामन भीग गया ये सांसें भी मेरी अब उसकी दी अमानत हैमैं जितना भी भरता गया उसका ही कर्ज़दार बनता गया अब नींदें भी मेरी रातों से दूर हो गईं मैं जागता रहा और उसकी ही यादों में रात काटता गयाइश्क़ होता गयावो दूर जितना भी गया इश्क़ होता गया... -
इश्क़ होता गयावो दूर जितना भी गयाये दर्द-ए-जुदाई उसकी मैं ख़मोशी से सहता गया जब वो इन आंखों को कहीं न आया नज़रमैं इतना रोया कि मेरा दामन भीग गया ये सांसें भी मेरी अब उसकी दी अमानत हैमैं जितना भी भरता गया उसका ही कर्ज़दार बनता गया अब नींदें भी मेरी रातों से दूर हो गईं मैं जागता रहा और उसकी ही यादों में रात काटता गयाइश्क़ होता गयावो दूर जितना भी गया इश्क़ होता गया...
वक़्त को बांधें रखा है अपनी कलाई पर लेकिन फिर भी अक्सर वक़्त की कुछ कमी-सी रहती है... -
वक़्त को बांधें रखा है अपनी कलाई पर लेकिन फिर भी अक्सर वक़्त की कुछ कमी-सी रहती है...
एक वक़्त था जब लगता था कि हम सब एक दिन बदल जायेंगे और आज देखता हूं तो ज़िन्दगी ही बदली हुई-सी नज़र आतीकाश कभी ख़ुद की जगह ज़िन्दगी को रखकर देखतातो शायद ये ज़िन्दगी कुछ पहले जैसी नज़र आती -
एक वक़्त था जब लगता था कि हम सब एक दिन बदल जायेंगे और आज देखता हूं तो ज़िन्दगी ही बदली हुई-सी नज़र आतीकाश कभी ख़ुद की जगह ज़िन्दगी को रखकर देखतातो शायद ये ज़िन्दगी कुछ पहले जैसी नज़र आती
वो चाह कर भी मेरे साथ नहीं ठहर सकता कि कुछ इतना आगे निकलकर आ गया है वो भला मुमकिन ही कहां हुआ है इस वक़्त को वापस पीछे मोड़ पाना... -
वो चाह कर भी मेरे साथ नहीं ठहर सकता कि कुछ इतना आगे निकलकर आ गया है वो भला मुमकिन ही कहां हुआ है इस वक़्त को वापस पीछे मोड़ पाना...