ऐ ज़िंदगी,शिकवे इतने है कि किताब लिख दूं सब्र इतना है कि एक लफ्ज़ भी ना कहूं बवाल इतना है कि लहरों से टकरा जायूं शांत इतना कि पत्थर बन जायूं बहती जिंदगी की नदी के साथ बह रही हूं काश कोई आए मोड,टकरा के टूट जायूं
ज़िंदगी में एक नया मोड़ आ रहा है वक्त बेवक्त कोई दिए जा रहा है हमेशा चाहती थी कोई समझे मेरी ख़ामोशी लफ्जों को मेरे वो जुबां दिए जा रहा है छू लेता है लबों से गालों के डिंपल जानती हूं मुझे हंसाने का बहाना बना रहा है कहता है बंद आंखों में बहुत खुबसूरत लगती हो सोते हुए मुझे देखने का बहाना बना रहा है फोन ना कट करने की जिद्द वो करता है सकून की नींद आज कल वो मुझे सुला रहा है