Natawar Singh Dewal   (कर्मवीर 'देवल')
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Joined 6 April 2018


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12 NOV 2021 AT 15:09

तड़पते दिल को सुकून का पता मिले न मिले...
तुम्हारे दर्द से बेहतर दवा मिले न मिले...

मेरे गुनाह के मुझको सजा मिलेगी जरुर...
मेरी वफाओ का मुझको सिला मिलें न मिले.....

मेरे गुनाह में शामिल मेरा जमीर भी था....
ये और बात है की उसको सजा मिले न मिले....

तुम अपने हाथ का पत्थर यंही पे खर्च करो....
फ़िर इसके बाद तुम्हे आईना मिले न मिले....

चलो हम आज ये किस्सा यंही पे ख़त्म करे...
की ख़ुद उलझ के भी मुझको सिरा मिले न मिले....

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23 AUG 2021 AT 15:53

फसलें जल चुकी अरमान जलना बाकी हैं
सुख चुके कुएं-बावड़ी अब रह गया क्या बाकी हैं

मिट गयी हाथों की लकीरे अब जिंदगी खोना बाकी हैं
किसी का मकान गिरवी हैं अब कौनसा इम्तिहान बाकी हैं

क्यूं तड़पा रहें धरतीपुत्र को अब कौनसा खेल बाकी हैं
हड्डियां गल चुकी अब तो सिर्फ सांस रुकना बाकी हैं ।

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22 JUL 2021 AT 18:09

ढूंढोगे तो ऐब हज़ार मिलेंगे मेरे में
मगर एक खूबी ये भी रखता हूं,
की किसी से ताल्लुक मतलब के लिये नहीं रखता हूं

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17 JUL 2021 AT 11:54

मोहब्बतों के शहर में राज दफन गहरे हैं,
निभाने के ख़्वाब तो बस तेरे और मेरे हैं ।

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12 JUL 2021 AT 22:48

अंधा इश्क़-गंदा इश्क़

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11 JUL 2021 AT 23:34

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9 JUL 2021 AT 8:56

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6 JUL 2021 AT 0:30

तू मेरे ख्वाबों की परी तो मैं तेरा नूर हो रहा हूं
तू समझती हैं बेवजह मैं तेरे से दूर हो रहा हूं
आखिर दिल ही तो हूं चकनाचूर हो रहा हूं
तेरे मिलने के बाद चमकता कोहीनूर हो रहा हूं
तेरी ही यादों के नशे में चूर-चूर हो रहा हूं
लिख रहा हूं तुझे और मशहूर हो रहा हूं ।।

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4 JUL 2021 AT 9:10

मैं अपनी औक़ात से ज़्यादा नहीं करता
निभा ना सकूँ वो कभी वादा नहीं करता
तमन्ना तों हैं बुलंदियो पर जाने की पर,
क्षत्रिय हूँ,
किसी अपने को गिराकर मंज़िल पाने का इरादा नहीं रखता।

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29 JUN 2021 AT 12:04

मुरझाते उन उदास पौधों में पानी दिया क़रो
कुछ दूर रहने वाले अपनो को भी याद किया क़रो
परेशानियों का सबब है ज़रूर यें ज़िंदगी पर
कुछ पल अपने ना सहीं अपनो के लिये भी जी लिया करो ।

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