अब किस काम की है ,
जब जरूरत थी इसकी ,
तुमने तब इसे बे लगाम कर रख्खा था,
अब खमोशिया खुद तेरी दीवानागार है ,
बस एक पल तो दिया होता तुमने।
ठहर कर सोचने को ,
मगर तुमने अब चुना है खमोशियो को ,
जब बर्दाश्त की हद गुजर गई ,
एक ठहर थी तेरी चाह की ,
चाहती थी तुम सुनो ।
पर तुम्हे बस परवाह थी अपने दम्भ की ,
अब करोगे किसको रूसवा,
खमोशियो की बरसात मे ,
जब खङा था कोई कुछ कहने की ताक मे,
तुमने उसे बहा दिया झूठी अपनी शान मे ,
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