सुबह चुभती है मेरी आंखों में,
अंधेरा हमसफर लगता है,
तेरी दी हुई तन्हाइयों का असर है ये,
कि खुद से मिलते हुए भी डर लगता है....
ये सूखे से पत्ते,
यह उजड़ी सी शाखें,
ये उठता सा धुआं,
ये बुझती सी यादें,
ना जाने क्यों देखा - देखा सा ये सारा मंज़र लगता है,
सुबह चुभती है मेरी आंखों में,
अंधेरा हमसफर लगता है.....
ये बढ़ते हुए से फासले,
ये रुके - रुके से सिलसिले,
यह खफा-खफा सी मंजि़ले,
ये खोए - खोए से रास्ते,
ना जाने थका - थका सा क्यों ये सारा सफर लगता है,
सुबह चुभती है मेरी आंखों में,
अंधेरा हमसफर लगता है,
तेरी दी हुई तन्हाइयों का असर है ये,
कि खुद से मिलते हुए भी डर लगता है.....
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