खोया बहुत है रोया नही है जगता है जैसाण सोया नही है
पल-पल का माँगेगा उनसे हिसाब अब
क्या हमने बोलो खोया नही है
सुख का नही कोई देख़ा है सपना
जलती धरा को दिया श्वेद अपना
मेहनत से सींचा है इस धरा को माना है माँ रूप वसुंधरा को
चलकर अगन पर है गुलशन खिलाया
आदर दिया सबको जब जो भी आया
दुश्मन ने जब भी सिर है उठाया पैरों तले उसको हमने दबाया
पर कौन इंसाफ़ करने है आया
अब हमने ख़ुद ही है बीड़ा उठाया
खोया बहुत है रोया नही है जगता है जैसाण सोया नही है.!!
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