जब डूब गया अंतिम तारा
तब फैला चहूँ दिस उजियारा
तब तक चलता है समर यहाँ
जब तक बचता कोई प्यारा
तब तक तम छोड़े ना मन को
जब तक की सबकुछ ना हारा
सब हार के ही भजता हरि को
जो जग का ताप हरे सारा
जब सब स्तंभ गिरें जग के
तब ही हरिनाम है आधारा
जब डूब गया अंतिम तारा..!!-
देह का दीपक...जलाती नेह बाती
मैं लहर तेरी....तुझी मे हूँ समाती
रात दिन हूँ साथ....कैसे दूर जाती
जन्मों की तड़पन..मगर ये मिट ना पाती
देह का दीपक..जलाती नेह बाती.!!-
घटनाएँ अक़्ल देती हैं
सबको अलग तरीक़े से
घटनाओं को शक़्ल देते हैं
सब अलग तरीक़े से..!!!-
आकाश दरकता है हवा के सरकने से
पानी में पड़ते हैं सल भीड़ के कोलाहल से
दूर किसी जंगल के चींखने से
सहम उठता है सोया हुआ सा शहर
क्या तुम्हें पता है..........!!!-
फ़र्क इससे नहीं पड़ता है कि
आपकी ज़िंदगी में क्या हो रहा है
फ़र्क इससे पड़ता है कि
उसे आप किस नज़रिए से देखते हैं
या उसे देख़ने से आपके नज़रिए में
क्या बदलाव आता है..!!!-
लहर भीगी रही और सूख गया है समन्दर
कौन जाने छिपा है क्या किसी के अन्दर.!!
देख़ले दूर तक कुछ नज़र कहाँ आता है
दिल में एहसास हो तो सामने दिख़ जाता है.!!
टूटकर बिख़रा कोई-कोई रहा इठलाता
उसने वोही किया जिसको था जो भी आता.!!
रात के पिछले पहर याद बहुत वो आया
यादें बनकरके रहीं देर तक सँग मे साया.!!
किस तरह लोग जाने उसने भी बनाए हैं
ग़ैर अपने हैं और अपने हुए पराए हैं.!!
किस्सा लम्बा है बहुत बाद में सुनाऊँगा
ज़िंदगी जब तलक है प्यार किए जाऊँगा.!!-
मुझको दे देना अपना
प्यार भरा आशीष
मेरे लिए यही दुनिया की
सबसे बड़ी बख़्शीश
इसके सिवा नहीं कोई भी
माँग मेरी जगदीश
मुझको दे देना अपना
प्यार भरा आशीष.!!!-
सुनो.....वही दिखेगा
जो तुम देखना चाहो
सुख़ और दुख जुड़े हैं सभी के साथ
अपने ग़मों को इतना ना सजाओ
किसी को किसी की जरूरत नहीं पर
बिना किसी के जीकर तो दिखाओ
सारी दुनिया अपनी सी लगेगी
बिना शर्त तुम प्यार अपना बहाओ
सबको ये लगता है मैं ही सही हूँ
कभी कोई इल्ज़ाम ख़ुद पर लगाओ
सुनो.....वही दिखेगा.!!!-
मैं बैठी इस पार पिया
तुम रहते उस पार
संगी हो तुम अब भी मेरे
क्या ये ही है प्यार
साँझ सुबह अँखियाँ रहीं मेरी
तेरी राह बुहार
जब चाहूँ पट-पलक गिराके
तुझको लेऊँ निहार
मैं बैठी इस पार पिया
तुम रहते उस पार..!!-