Naresh Kumar   (꧁꧂༺Naresh Ke Lafz༻꧁꧂)
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Joined 20 June 2019


Joined 20 June 2019
10 NOV 2021 AT 17:21

ऊँ कागज की छोटी कस्ती
आम के पेडों पर वो मस्ती
सुन गलियों में शोर-शराबा
तंग आकर भी माँ हमेशा हँसती
वहीं थी हमारे बचपन की खुबसूरती

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10 NOV 2021 AT 16:58

अंधेरा छाया हुआ है रुक तो जरा
मौसम बिगड़ा हुआ है थम जा जरा
इस प्यार के तूफान में उड़ जाएगा
ए-दिल किधर जाता है बता तो जरा

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7 SEP 2020 AT 17:04

पता है, आज भी तेरे शहर में डर लगता है
मुझे बार-बार दुपट्टा सही करना पड़ता है
नामर्दो की भीड़ में कई अच्छे लोग भी होते हैं
पर अफसोस उन्हें भी हैवान कहना पड़ता है

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2 SEP 2020 AT 10:38

कल मैंने तुमसे कुछ कहा था
कि कुछ भी छुपाना मत!
काश तुम वो बात हमारी मान जाते

छिटकता नहीं वो शीशा जो तुम उसमें झाँक आते
फेंमस तो थे पर अपनी पहचान तुम पर थोप आते
जो चलते साथ मेरे हर सफ़र के मोड के शिरे तक तो
यकीन उस सफ़र की मंजिल पर तेरा नाम लिख आते
बस तुम हमारी बात मान जाते

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30 AUG 2020 AT 21:21

देखो बस तुम इतना करना, मुझसे कुछ छुपाना मत
बुरी लगे मेरी आदत तो बता देना मगर रूठना मत
चलेंगे साथ लंबे सफर पर किंतु बीच राह छुटना मत
देखो बस तुम इतना करना, किसीके आगे झुकना मत
जहर पिलाने वाले लाखों मिलेंगे पर तुम निगलना मत
कोशिशें कई होगी तुम्हें तोड़ने की पर तुम टूटना मत
देखो बस तुम इतना करना,मेरा हाथ कभी छोड़ना मत
वादे किए हैं जो हमने मिलकर उन्हें तुम तोड़ना मत
ख्वाब आएंगे बहुत ही डरावने, बस तुम डरना मत
देखो बस तुम इतना करना, मुझसे किनारा करना मत

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27 AUG 2020 AT 23:53

हाँ, खर्च कर दिया खुद को तुझे पाने की चाह में
फूलों को बेगाना कर दिया जो बिछे मेरी राह में
अब पत्थरों के साथ हुई हैं जो दोस्ती तेरे लिए
तो यही ले आयेंगे मुझे तेरी दिलकश पनाह में

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27 AUG 2020 AT 14:07

Sometimes in the day
and sometimes at night
I remember the same moon
from which these stars shine,
I often talk to these stars too

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27 AUG 2020 AT 9:26

ढूंढने चला हूं कल को पर कल कहीं नहीं मिला
सफर करने वाले चले गए, सुराग कहीं नहीं मिला
सदियों से खामोशीयाँ लिपटाये हवा चल रही है
परंतु ठिकाना तो इस हवा को भी कहीं नहीं मिला

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26 AUG 2020 AT 6:34

Yeah Chaand Bhi Badaa Baatuni H
Din Chota Saa Magar Raat Doguni H
Mehbub Ki Hi Baate Krta Raatbhar Or
Kehta Uski Chamk Mujhse Chouguni H

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25 AUG 2020 AT 7:19

जिंदगी चाहती थी वो मेरे और करीब हो आए
मीठी तो थी पर थोड़ी और मीठी हो जाए
थोड़ी होट और उससे निकलते बहुत से थोट़
वो चाय की प्याली थी जो होठो से लग जाए

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