:-क्या कहूं मैं आज बेआवाज हूं:-
ना उसका होने की चाहत ना उसे खोने का गम,
ना उस पे मरने का जुनून ना साथ जीने का हौसला,
ना उससे कोई दोस्ती ना ही कुछ दुश्मनी,
ना उसे याद करने की वजह,
ना उसे भूलने की तकलीफ,
क्या कहूं मैं आज बेआवाज हूं!!!!
कैसा मोड़ ये सफर में,
रास्तों का पता नहीं मंजिल अनजान है,
बेरुखी अंदाज में आज फिजा भी बेजान है,
उसके इंतजार की आरजू खत्म .सच को झूठ समझने की आजमाइश खत्म,
"ना उसे जिंदगी में रख पाने की जगह",
"ना जिंदगी से निकालने की वजह",
क्या कहूं मैं आज बेआवाज हूं!!!
-