नेह की लगन मन हो रहा मगन, प्यार अधरों को मेरे सजाने लगी भोर की लालिमा साज श्रंगार कर, कपोलों को मेरे सजाने लगी। प्रेम के रोग से अब ग्रसित मैं हुयी धड़कने भी गवाही सी देने लगी दर्पन के सामने खुद को निहारा करूं आंख कजरे में छुपकर शरमाने लगी।
इश्क का दामन पकड़ फिर छोड देता है रूसवाईयों के भंवर मे, अकेले ढ़केल देता है। मुहब्बत में फंसाकर कत्लेआम है करता जिस्म रौंद कर फिर बोटी बोटी करता है। इश्क में जालिम ने मेरे टुकड़े टुकड़े कर दिए आत्मा भटकती सभी से कह रही होशियार रहना है। स्वरचित ✍️