Narender Kumar Arya  
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" कि सुनता नहीं या वो खुदा नहीं "
Joined 27 March 2019


" कि सुनता नहीं या वो खुदा नहीं "
Joined 27 March 2019
27 SEP 2023 AT 22:30

हो जाए गर यकीन
मुझे भी दिलाना तुम
जैसे मैं चाहता हूं
मुझे भी चाहना तुम

माना कि फ़ासला है
हमारे दरम्यान एक
तोड़ के ज़ंजीरे मुझसे
लिपट जाना तुम

कोई तो हमें हमारी
कहानी से बहाल करे
मैं कह ना सकूं जो वो
दास्तान बन जाना तुम

और एक उम्र का वज़ूद
रख लिया है पास मैंने
अब यही ख़्वाहिश है
रफ्ता रफ्ता मिटाना तुम

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5 SEP 2023 AT 22:07

सभी दिनों को निकाल कर
वो तेरा जाना याद आता है

किस्से कहानियां सुनी सुनाई थी
वो एक छोटा फ़साना याद आता है

मेरी उंगली से लग कर तेरी उंगली ने जो
मुझे वो तेरा राह दिखाना याद आता है

भर कर तेरे आंसू अपनी आंखों में मैं
लग के सीने से तेरा मुस्कुराना याद आता है

और तेरे रूख़सार पे जो ग़ेसू लिपट रहे
होंठो से अपने वो हटाना याद आता है

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31 MAY 2023 AT 21:55

Tumhe Mera Intzaar Dekhna Hai
Aa Jana Meri Kabr Pe

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28 MAR 2023 AT 17:21

मैं उसके ख़्वाब
जला के बैठा हूं
मैं खुद आग
लगा के बैठा हूं

और उसके हक़ में
चिंगारियां बोलने लगी
मैं जिससे सारे
राज़ छुपा के बैठा हूं

तिलिस्म वाज़िब है
मोहब्बत कि पहली सीढ़ी
मैं इश्क़ में सारी
मीनार गिरा के बैठा हूं

तुझ पे क़त्ल के
इल्ज़ाम ना आए
मैं यूंही नहीं क़ब्र कि
दीवार गिरा के बैठा हूं

होश में आने का
ये बहाना भी ठीक है
मैं कल रात से
दो चार लगा के बैठा हूं

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27 FEB 2023 AT 14:36

तमाशा ऐ ख़ाक पे मुस्कुरा रहा हूं
मैं अपने ज़ख़्मों को आजमा रहा हूं

कि तमन्ना है तुम्हें भूल जाने कि
यादों से दामन ऐ यार जला रहा हूं

फुर्सत ऐ यार वफ़ा कि राहों में
मुन्तजिर मैं अपना सर टकरा रहा हूं

किसी ख़्वाब कि तासीर होने तक
कि क्यूं मैं आंखों को जला रहा हूं

क्या सोचता हूं और सोचता हूं
किसे मैं अपने ऐब गिनता रहा हूं

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21 FEB 2023 AT 9:12

रोज एक तस्वीर ख़ाक कर रहा हूं
क्यों रोज खुद को याद कर रहा हूं

कि अब एक तमन्ना है खुद से रूठ जाने कि
क्यों तुझसे मिलने कि नई फरियाद कर रहा हूं

उसे भी नई अन्जुमन कि तलाश है
मैं खुद चिताओं सा राख कर रहा हूं

उसके हक़ में लिखी है ज़िन्दगी सो जाने दो
बेवजह इसे जी के क्यों मैं गुनाह कर रहा हूं

कोई किसी से फ़कत मांगता भी नहीं
मौत दुआ है जिसे मैं रोज कर रहा हूं
© Narender Kumar Arya

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15 FEB 2023 AT 7:21

यही गुनाह के सर सलामत ना रख सका अपना
बाजुएं क्षिण थी शमशीरें रखनी पड़ी

तेज धूप और सर्द हवाएं
बहारो कि भी खबर रखनी पड़ी

गुलामी साज है रफ्ता बरबाद होने का
सर से पाव तक ये बात रखनी पड़ी

और नई चिंगारियां उडाती है मजाक मेरा
मगर दिल आग कि दिल में रखनी पड़ी

वो मिल जाए तो सुनाने हैं ज़ख़्म अपने
यूं तो लफ्जों को भी ख़ामोशी रखनी पड़ी

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2 FEB 2023 AT 18:45

नए नए आसमान तलाशे जा रहे हैं
घर के उजड़े जहान तलाशे जा रहे हैं

मिट गए हैं ख़ाक में हम मगर फिर भी
मौत के नए नए सामान तलाशे जा रहे हैं

और एक वही रात वस्ल कि गुनाह है सर पे
चराग़ों के लिए जहां दीवान तलाशे जा रहे हैं

उसके जाने का हुनर भी क्या हुनर था यारो
उसके बाद भी खुद को तलाशे जा रहे हैं

कि शज़र के उतारे गए हैं कुछ लोग
कुछ निगाहों में तलाशे जा रहे हैं

किसी भी मुकद्'दर में हासिल नहीं है वो
हम हथेली कि ख़ाक तलाशे जा रहे हैं

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29 JAN 2023 AT 5:46

मैं भी होश में आने लगा हूं
शायद मैं भी दिल दुखाने लगा हूं

कि ज़िक्र मैं उसका अब नहीं करता
मगर ये भी मैं उसे बताने लगा हूं

और हिफ़ाज़त में रखना ये भ्रम अपना
मैं भी किसी को याद आने लगा हूं

उस के हिस्से ज़ख़्म मुझे सजाने पड़े
यूं ही नहीं मैं मुस्कुराने लगा हूं

ख़बर दो कोई कहीं मैं बुझ ना जाऊं
मैं धीरे धीरे खुद को जलाने लगा हूं

ऐ खुदा अब मौत आ ही जाए तो अच्छा
अब तो मैं तेरे दर भी सर झुकाने लगा हूं

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25 JAN 2023 AT 12:50

छूट गई अब वो यारो कि महफ़िले
एक क्वार्टर हम अकेले पीते हैं

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