वो कहते है लफ्जों मे सादा पन है
उन्हे क्या कहूँ रंगीन लफ्जों की वाहवाही
नही होती,-
तू प्रेम सा मैं प्रेयसी सी
तू मेद्य सा मैं वसुन्धरा सी
तू निशब्द सा मैं व्याख्या सी-
आज इस मौसम की पहली बारिश हुई
कुछ नई बस पूछना था कि तुम कही बाहर हो क्या
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दीवाना.....,
मुझसे ना पूछ मेरे हालात कैसे हैं
और ने मुझे दिल का मरीज बताया है
वो कहते है 2
कि लफ्ज थोडे सादे लिखा करो
दिल की घड़कने सुनाई देती है
मियाँ......
सादे लफ्जों की यहाँ क्या कीमत
हमें तो उनके बेवफाई के किस्से कह
बस महफिले लुटनी है.....
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हर किसी को अपनी शख्सियत पर यहाँ गुमान है जरासुनो इस मिट्टी से ही पूछ लो वो सिकन्दर-ए-शानी कहाँ है।
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दीवाना कहता है
तू लाख लिख ले गालिब शेर उस मोहब्बत पर
कत्ल मैं भी था और तु भी
फर्क बस इतना सा था
फर्क बस इतना सा था
मै निगाहों में था उसके और तू निगाहों सें था-
That's nice question ....
Which making me bit shy....
But it's ok let me explain...to you
Just one thing ...
.....My attitude towards me ...or others-