परेशानियों ने घेर रखे
वक़्त के सिलसिले हैं
सबका साथ देने वाले हम
जब भी पलट कर देखे
हर राह में बस तन्हा मिले हैं-
मेरी आदतें , मेरी ख्वाहिशें, मेरी मन्नतों में हैं प... read more
वो कहेगा खो दो मुझे
तो खो दोगे क्या
वो जो शख्स बेपरवाह सा हैं तुम्हारे लिए
उसके सामने उसके लिए रो दोगे क्या
वो पूछ ले जज्बात तुमसे तुम्हारे
तुम अपना प्यार उसको सौंप दोगे क्या
वो जो बताये तुम्हे किसी के लिए अपनी खुमारी
कभी सोचा हैं खुद से कहोगे क्या
लौट आओ लौट आने का रास्ता बाकी हैं अभी
समझदार हो तुम
किसी के इश्क़ में मरते अच्छे लगोगे क्या-
तुम नही भी मिले तो क्या होगा
कुछ खास नही
आँखें मुस्कुराना छोड़ देंगी
होठ गुनगुनाना छोड़ देंगे
हवा गुजर जायेगी महसूस नही होगी
फूलों में वो खुशबू मिट जायेगी
गीत दर्द बन जायेंगे
धड़कन खामोश हो जायेगी
सपने खत्म हो जायेंगे
और अपने होकर भी हम अकेले रह जायेंगे
तुम्हारा ना मिलना ऐसा होगा जैसे
हवा के झोंके लहरों से टकराएँगे-
जो कहर मुझ पर बरसा हैं
कभी तो उस पर भी बरसेगा
आज हम तबाह हैं उसके लिए
कल वो भी हमसे बात करने को तरसेगा-
समझदारी ऐसे नही मिलती
समझदार होने के लिए
पहले तबाह होना पड़ता हैं
तन्हाई ऐसे नही मिलती
धोख़ा खाने के लिए
पहले किसी के साथ बेहद वफादार होना पड़ता हैं
आवारा ऐसे नही बनते
हर किसी पर मरने के लिए
पहले किसी एक पर
आखिरी सांस तक ठहरना पड़ता हैं
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मुसलसल प्यार बढ़ा
सिलसिले बढ़ते गए
कभी जो वादें जागीर थे
उनकी मोहब्बत की
वो धीरे धीरे बदलते गए
हम टूटे , बिखरे , रोये , बिलखे
पर अपनी तन्हाई में ही सिमटते गए
सुकूँ थे जिसका हम
उसके जिंदगी जीने के
तजुर्बे बदलते गए
वो तो बढ़ गया
समय के इस सैलाब में
एक हम ही थे
जो डूबते गए तरते गए
हम खुद ही खुद में सम्भलते गए
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ज़माने के इस दौर में
हर कोई
तलबगार हुए बैठा हैं मुझपर
मैं कैसे नज़र उठा कर भी देख लू
किसी को
कोई आँखें मूंद कर
प्यार में विश्वास किए बैठा हैं मुझपर
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स्त्री ने हमेसा प्रत्यक्ष चुना हैं
अपनी प्राथमिकताओ को
पुरुष आज भी
फर्ज़ और मोहब्बत में
उलझे हुए हैं
पुरुष आज भी
प्राथमिकताओ का चयन करते वक़्त
चुन लेते हैं फर्ज को
बिना अपनी ख्वाहिशें कहे
छोड़ देते हैं वादें अधूरे
और बन जाते हैं
एक उदाहरण दूसरे पुरुष के लिए
वो भूल जाते हैं शिकायत करना
थक कर गोद में सर रख लेना
भूल जाते हैं अपना हक जताना
नींद पूरी न होने पर चिड़चिड़ाना
वो जिम्मेदारियां पूरी करने लगते हैं
जिंदगी जीने वाले पुरुष
जिंदगी बिताने लगते हैं-
जो तक़दीर ने छीना
वो उनमें पाया
सिसक कर रोयी जब
सुकून के लिए दर उनका पाया
पापा तो शब्द ही विलुप्त हो गया मेरी जिंदगी से
पर पिता की हर अनुउपस्तिथि में
मैंने महादेव में पाया पिता का साया
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अंधेरा ऐसे ही नही पसन्द आता लोगो को
जब महसूस किया तो जाना
यहाँ अकेलापन खलता नही
कोई झूठे मतलब से अपने फायदे से
समय बिताने के लिए
साथ चलता नही
यहाँ अपनी परछाई भी साथ छोड़ जाती हैं
तो खुद की गलतियाँ, पछताबे
और यादों से वास्ता रहता नही
बदल जायेगी रौनके , महफिले, मंजिले
अंधेरा अपने चेहरे बदलता नही-