Nandini Agrawal   (Nandini❤)
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Joined 31 January 2021


Joined 31 January 2021
26 MAR AT 23:37

जिसको माना अपना सब कुछ
उसने अपना सब कुछ हार दिया हैं

किसी ने माँगा उससे हाथ उसका
और मजबूरी में ही सही
उसने उसका हाथ थाम लिया हैं

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20 MAR AT 21:25

और वो समझा ही नही
उस से नाराज़गी नही
मन में उदासी हैं
उसे खो देने की

वो समझा ही नही
बातें बहुत करनी हैं उस से
पर ना मंजूरी हैं
उसके सामने
उसके लिए रो देने की

वो समझा ही नही
बात नही हैं ये मोहब्बत निभाने की
एक वादा हैं उसके बिना भी
बस उसका रहने की

वो समझा ही नही
एक तलब हैं पूरी दुनिया के सामने
उसे बस अपना कहने की.................

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12 MAR AT 20:52

होली के रंगो में
आपका रंग नही होगा

पापा एक और त्योहार
आपके संग नही होगा

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8 MAR AT 20:07

स्त्री ही स्त्री की दुश्मन बनी
स्त्री ने ही दूसरी स्त्री का घर तोड़ा हैं

मर्द की मोहब्बत तो बस बहाना रही
मर्द ने अपना मन भर जाने पर हर स्त्री को छोड़ा हैं

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1 MAR AT 20:05

उसको खुद के वादों पर गुमान बहुत हैं
वो कहता हैं उसे मुझ पर विश्वास बहुत हैं

यूँ तो बढ़ जायेंगे हम दोनों अपनी राहों में आगे
पर दिल को दोबारा उस तड़प तक
ले जाने के लिए हमारी एक मुलाक़ात बहुत हैं

वो बंध जायेगा वक़्त की बेड़ियों से
और मैं मर्यादा लांघ नही पाऊँगी
पर रहूँगी उसके साथ बिना किसी उम्मीद
मुझे अपनी सरलता पर अभिमान बहुत हैं

वो कह दे तो रुक जाऊ
वो कह दे तो चली जाऊंगी मैं
मुझे उसकी सहूलियत का अहसास बहुत हैं

वो कहता हैं बस विश्वास की डोर थामे रखना
क्यों की दूरियों में मोहब्बत पर इल्ज़ाम बहुत हैं

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23 FEB AT 18:19

जितना उसको चाहा उतना उसमे खोती गयी
मैं.. मैं ना रही बस उसकी होती गयी

वो बदल गया वक़्त की करवटों के चलते
और एक मैं जो उसके लिए उसके हिसाब से ढलती गयी

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28 JAN AT 21:59

तेरे कंधे पर मेरा सिर
और परेशानियों से
थोड़ा इनकार हो

तुम साथ हो मेरे
और सामने केदार धाम का
दीदार हो

बस कुछ इस तरह खत्म हमारा इंतज़ार हो ❤

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25 JAN AT 22:07

जिनको अपना बना बैठे हैं
वो अपना मानते नही हैं

तकलीफ लाख पहुँचा कर
हार मानते नही हैं

उन्हे लगता हैं दरार आती नही रिश्तों में
शायद वो जानते नही हैं
दरार के बाद शीशे हो या रिश्ते
पहले की तरह जुड़ पाते नही हैं

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22 JAN AT 20:01

रास्ते सौ अपनाये
तुम्हारे प्यार से खुद को बचाने को

फिर वक़्त भी बहुत लगा
तुम्हारी बेरुखी भुलाने को

जहाँ से चले थे वही जा रुके
लेकर दिल में अपने मोहब्बत के फसाने को

अब शायरी बना कर सुनाते हैं महफ़िलों में
अपने तन्हाइयों के किस्से जमाने को

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8 JAN AT 20:32

कि ये दूरियाँ मुसल- सल बढ़ रही हैं
बाते बद- गुमानियों में ढल रही हैं

कहूँ भी अगर तो तुमसे क्या कहूँ
तुम ही देखो ना

तुमसे जोड़ कर रखने वाली
हर गांठ सुलझ रही हैं

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