Nanđan NañdVãnshi   (© नन्दन)
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Joined 11 June 2019


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Joined 11 June 2019
18 APR AT 7:21

यदि आप समाज को सशक्त करना चाहते हैं, तो बस केवल एक कार्य है अपने शरीर और मन को सर्वप्रथम मजबूत बनाओ। क्योंकि वह व्यक्तित्व बनना होगा कि लोग आपसे मिलकर आनंदित महसूस करें। लोग आपकी बात सुने, ठहरे, ध्यान दें। आपका व्यक्तित्व देखकर उनमें गर्व की अनुभूति हो। तभी आपके प्रति सम्मान की दृष्टि होगी। शरीर को व्यायाम और ध्यान से तथा मन को अध्ययन से मजबूत बनाओ। खाली समय में सृजनात्मकता के लिए कविता पाठ, संगीत, नृत्य,कला आवश्यक है जो आपको आनंदित करेगी। प्रतिस्पर्धा आप केवल अपने लक्ष्य से जुड़े ऊंचे स्तर के लोगों से ही करें। लक्ष्य से इतर लोगों के साथ अपना समय अधिक न व्यर्थ करें, फिर वह चाहे आपके मित्र हो या रिश्तेदार। आपको सदैव ऊर्जावान रहना है। तभी कुछ संभव होगा। इन सबके जो विरोध में हो, या करने से रोकता हो उसे त्याग दो। यही अनुशासन आपको बदलेगा। बिना अनुशासन, नियम समय होने के बावजूद व्यर्थ हो जाएगा। केवल समय और शरीर ही बर्बाद होगा और ऐसा होने पर आप स्वयं को सज्जन, सीधा-साधा, उदासीन प्रवृत्ति का पायेंगे। फिर समाज में ही गलतियां और बुराइयां दिखाई देगीं और दुनिया जीने लायक नहीं लगेगी। आपको अन्य जन सामान्य लोग‌ भी अहंकारी, दुष्ट और नालायक दिखाई देंगे। हालांकि यह सब अपनी कमजोरी के कारण होगा। संसार किसी भी स्तर पर कमजोर लोगों के लिए नहीं है। सारी कमियां खुद में ही है, दुनिया सारी बेहतर है।

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14 OCT 2023 AT 19:25

लोग जमाने में हर जगह जज बनते हैं। वह अच्छा- मैं बुरा, वह गरीब - मैं अमीर, वह छोटा - मैं बड़ा, हर जगह तराजू लेकर टहलते हैं। लेकिन शायद अगर इतना ध्यान खुद पर दिया होता तो उसे जानते जिसे जमाने की जरूरत नहीं...

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8 MAR 2023 AT 23:53

या खुदा अगर फिर जन्म के काबिल समझना,
तो या तो पूर्णतः पशु-पक्षी के रूप में जन्म देना
और यदि सौभाग्य से नारायण आपकी आंखों का तारा हो,
तो केवल और केवल नारी के रूप में ही जन्म देना।

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5 FEB 2023 AT 14:25

रामचरितमानस कोई ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं है वह साहित्य ग्रंथ है, साहित्य में साहित्य की दृष्टि से रचना देखी जाती है उसका कंटेंट क्या है मायने नहीं रखता, तुलसीदास को चौपाई बनानी थी उसकी अपनी निश्चित मात्राएं होती है, सो उनके पास जो शब्दकोश था उसी से उन्होंने अनेक अव्यावहारिक अर्थ वाली चौपाई छंद की रचना की. रही अर्थ की बात तो तुलसीदास कवि थे सामाजिक विचारक नहीं थे, जो वह सोचते कि इस पंक्ति के अर्थ से समाज का ताना-बाना बिगड़ जाएगा। और उनको नहीं पता था कि यह ग्रंथ आगे पूजनीय और हिंदी की किताबों में आ जाएगा, ब्राह्मणों के अलावा भी लोग इसे पढ़ेंगे, यह पता होता तो जरूर अच्छा ही लिखते। मैं समझता हूं लड़ाई तुलसी से नहीं होनी चाहिए क्योंकि तुलसी ने तो सिर्फ लिखा है कम से कम आपको ब्रह्मणवादी मानसिकता का एक साक्ष्य दिया है, उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए लेकिन जो ब्राह्मणवादी मानसिकता ब्रह्मणवादी लोगों में व्याप्त है उससे कैसे लडोगे, उनके दिमाग से इस मानसिकता को कैसे दूर करोगे। उसका तरीका यह नहीं हो सकता जो आज आप कर रहे। यहां तक कि वर्तमान में यह है कि जिसने ब्राह्मणवादी मानसिकता को दूर करने के लिए बुद्ध, अंबेडकर, कांशी राम आदि महापुरुषों ने बीड़ा उठाया था उन्हीं की गोद में बैठ कर उनके उत्तराधिकारी अपनों को दूर करके ब्राह्मणों से तुच्छ सम्मान लेकर उसी ब्राह्मणवादी मानसिकता को पोषित कर रहे हैं।

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30 JAN 2023 AT 18:35

लेकिन आज भारत के अधिकांश लोगों को मुस्लिम शासकों के नाम और उनके बारे में कहानियां याद है लेकिन मराठों के बारे में शिवाजी नाम के अलावा कोई कहानी पता नहीं होगी। मुख्य कारण है मराठा जानवरों की तरह शिकार करते रहे। एक क्षेत्र जीत लिया तो वहां से चौथ आनी शुरू हो गई लेकिन उस पर किसी दूसरे ने आक्रमण कर दिया तो बंद हो गई। इन्होंने अपनी आय के अन्य स्रोत नहीं बनाई। न कोई विद्यालय खोला न कोई व्यापार को बढ़ावा दिया न कोई विश्वविद्यालय खोला, ना ही अन्य विदेशी राज्यों से संबंध जोड़ें, कुल मिलाकर रचनात्मक कार्यों की ओर ध्यान ही न दिया, वह लूट के माल में ही अपना साम्राज्य चलाते थे। संरचनात्मक विकासात्मक कार्य ना होने के कारण मराठा साम्राज्य शक्तिशाली होते हुए भी इतिहास में अपना अस्तित्व बनाए रखने में अक्षम दिखाई देता है। वर्तमान उत्तर प्रदेश की राजनीति में यदि मायावती का नाम लोगों की जुबान पर है तो वह उनके किए गए जनहित कार्यों की वजह से नहीं, क्योंकि जनता की स्मरण शक्ति बहुत कमजोर होती है कोई नया शासक आया जनता ने उसको याद कर लिया उसके कामों की चर्चा करने लगती है, मायावती का नाम सिर्फ उनके द्वारा कराए गए स्मारकों, पार्को, रहने के लिए बनाए गए आवासीय भवनों आज से ही की जाती है।

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30 JAN 2023 AT 18:34

रामचरितमानस की प्रतियां जलाई जा रही है, वर्तमान समय प्रतिमाओं को नष्ट करने का पुस्तकों को जलाने का युद्ध करने का नहीं रहा. बल्कि जो बातें इतिहास में आप के विरुद्ध हैं आपको अपमानित करती है उन को जड़ से बदलने का समय है. किसी समय डॉक्टर अंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई थी वहां आशय सोए हुए समाज को जागृत करने का था. लेकिन वर्तमान में ऐसा समाज नहीं है पिछड़े वर्गों के लोग भी राजनीति में अग्रणी भूमिका में है. पुराना तरीका अब प्रभावी नहीं है। यदि प्राचीन समय की पुस्तकों को देखें तो उसमें लिखा होगा कि आकाश में उड़ना असंभव है। लेकिन क्या वर्तमान युग में यह उक्त महत्व रखती है जी नहीं। आज तो इस विषय पर मूर्ख भी चर्चा नहीं करेगा। इसी प्रकार पुरानी किसी भी समय लिखी गई अप्रिय बात को गलत साबित करने का एक ही तरीका है वह है रचनात्मक एवं वैज्ञानिक विकास ना कि व्यर्थ का विरोध। इतिहास में एक समय ऐसा था कि लगभग पूरे भारत पर मराठों का राज्य था। पूरे भारत से चौथ वसूलते थे। भारत का वह एकमात्र साम्राज्य है जिससे मुसलमान शासक और अंग्रेज भी कांपते थे।

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30 JAN 2023 AT 18:11

परिस्थितियां...
जगत परिणाम है परिस्थितियों का, इस जगत में समस्त जीव जंतु परिस्थितियों की ही देन है. व्यक्ति जन्म लेता है उसकी अपनी परिस्थितियां है व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है उसकी भी परिस्थितियां, प्रतिकूल परिस्थितियों मैं हर कार्य या यूं कहें सब कुछ असंभव है हम कहते तो हैं कि जो व्यक्ति परिस्थितियों से लड़ लेता है वह सफलता को प्राप्त करता है लेकिन जरा ध्यान से देखा जाए तो किसी ने उसको लड़ने लायक परिस्थितियां उत्पन्न भी की की है व्यक्ति स्वयं नहीं लड़ सकता अन्यथा हर व्यक्ति कथन अनुसार सफल हो, हम कहते हैं मित्र प्रतिकूल परिस्थितियों में हमारे काम आते हैं लेकिन आप सभी को अपना विश्वसनीय मित्र शायद नहीं बना सकते क्योंकि वैसा मित्र केवल तभी बन सकता है जब आप दोनों की परिस्थितियां समान हो या समान बनाई गई हो. देखा होगा भिन्न-भिन्न सोच विचार के व्यक्त भी एक परिस्थिति आने पर सगे भाई जैसे हो जाते हैं. यही बात पति-पत्नी जैसे रिश्तो में भी है, वास्तव में उसके समस्त पक्ष ना तुम जानते हो ना वह तुम्हें जानती है, तो फिर वहां एक कृतिम तरीके की परिस्थिति पैदा की जाती है कि हम दो इस समाज के नजर में एक हो गए हैं फिर केवल यही बनावटी परिस्थिति जीवन काट देती है. लोगों को यह स्वीकार करना चाहिए और उनकी परिस्थितियों का अध्ययन करना चाहिए, जगत में परिस्थितियां अलग हैं इसलिए भाषा विचार संस्कृत सब अलग है.

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20 DEC 2022 AT 16:57

आज भारत का बहुजन जो शिक्षा से वंचित है, अपने पुश्तैनी धंधे पर आश्रित है, वह केवल चिंतक वर्ग के द्वारा किए गए अन्याय व्यवहार के कारण है। शायद आद्य चिंतकों ने सर्व समाज को ज्ञान दिया हो लेकिन उनके वंशजों द्वारा ज्ञान पर केवल अपना एकाधिकार बनाने के कारण इतिहास से लगाकर आज तक भारत की बदहाल स्थित है, कभी भारत एक ना हो पाया, क्योंकि उनके वंशजों ने जीवन भर आराम लेने के लिए समाज में फूट डालकर शासन करने की परंपरा विकसित की।
अंग्रेजों के आने के बाद जब चिंतकों के वंशजों को आभास हुआ कि अब हम गुलाम हैं तब उनको देश बनाने की याद आई। लेकिन अब समय बदल गया था समाज का पिछड़ा वर्ग भी नया इतिहास लिख रहा था। इसमें डॉक्टर अंबेडकर का महत्वपूर्ण योगदान रहा। लोग जानने लगे कि हमें हजारों वर्षों से ठगा गया। विश्व में केवल भारत का बहुसंख्यक वर्ग ही ऐसा वर्ग है जो अपने देश में रहकर भी गुलाम बना रहा। 'हिंदू' शब्द मुसलमानों द्वारा भारतीय काफिरों के लिए है। उसी तरह जैसे तथाकथित उच्च हिंदू वर्ग द्वारा भारतीयों के लिए 'शुद्र' शब्द है।
आज जब बहुसंख्यक वर्ग बौद्ध मुसलमान ईसाई बन रहा है तो तथाकथित उच्च समाज को बुरा लग रहा है, हालांकि यदि वह बहुसंख्यक वर्ग की कमियां गलतियां ना बता कर स्वयं की गलतियों को दूर कर दे तो आज भी समाज एक हो जाएगा। और तभी भारत, भारतीय और भारतीयता का सपना पूरा होगा।

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20 DEC 2022 AT 16:33

वास्तविक ज्ञान की संपदा सर्व समाज की होती है, वह किसी भी धर्म का हो, क्योंकि जिन्होंने ज्ञान के लिए चिंतन किया, वह यदि जीवन यापन का कार्य करते तो वह ज्ञान तक ना पहुंचते, समाज के व्यक्तियों ने कुछ लोगों को सिर्फ चिंतन करने के लिए ही छोड़ दिया उनके लिए भोजन, कपड़े,पानी यहां तक हर प्रकार की सेवा समाज के अन्य लोगों ने की। और इसी भाव से की कि जब आप ज्ञान एवं सत्य को पाएंगे तो हम लोगों को भी वितरित करेंगे। खेतों में काम करने वाला, बाल काटने वाला, जानवरों को चराने वाला, मल मूत्र हटाने वाला, चमड़े का कार्य करने वाला सब इसी विश्वास पर कार्य करते रहे कि जब यह चिंतक ज्ञान प्राप्त करेंगे तो हम सब में से बाटेंगे। बात सही भी है क्योंकि ज्ञान का अधिकार उस चिंतक को नहीं पूरे समाज को है यदि यह सब लोग उनका कार्य ना करते तो वह भी ज्ञान प्राप्त न कर पाते। इसलिए पुरखों के वास्तविक ज्ञान पर सभी का अधिकार है। आज पिछड़ा एवं दलित समाज शिक्षा से वंचित है उसका एक ही कारण है कि उन चिंतकों के वंशज एवं शिष्य स्वयं को श्रेष्ठ एवं जीवन भर अपने चिंतक पुरखों की तरह सेवा लेने के लिए उनके ज्ञान पर कब्जा कर लिया बिल्कुल उसी तरह जैसे एक बनिए की दुकान का मालिक उसका पुत्र ही बनता है, पिछड़ी जातियों के परिवारों में भी यही हो गया, उन्हें शिक्षा से वंचित किया गया इसलिए वह जीवन यापन के लिए पुश्तैनी काम के गुलाम हो गए।

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20 DEC 2022 AT 16:18

पहचान :

व्यक्ति में जैसे ही थोड़ी समझदारी आती है वह समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए तैयारियां शुरू करता है कुछ पहचान ऐसी हैं जो बिना जाने ही उसे परंपरागत रूप से घर से दे दी जाती है जैसे जाति और धर्म आज शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो किसी ने पहले जानकर धर्म को अंगीकार किया हो आज जो लोग धर्मांतरण कर भी रहे हैं वह सिर्फ इसलिए कि सामने वाले से अपने को श्रेष्ठ कैसे सिद्ध करें तो दलित एवं पिछड़े समाज के लोग बौद्ध धर्म ग्रहण कर रहे हैं कारण इतना है कि उच्च वर्ग के समक्ष हम श्रेष्ठ कैसे समझे जाएं, वह बुध से ज्ञान और ध्यान सीखने के लिए धर्म नहीं ग्रहण कर रहे हैं केवल राजनीति कर रहे हैं। यही पुनः इन के पतन का कारण है। मेरा मानना है की किसी के सामने श्रेष्ठ बनने से बेहतर है कि स्वयं श्रेष्ठ बनने का प्रयास करें और उस बनने में जहां कहीं से भी शिक्षा लेनी पड़े ले, फिर चाहे आपके विरोधी के ग्रंथ पढ़ने पढ़ें, आप को अपमानित करने वालों के ग्रंथ पढ़ने पढ़ें, या यह ना पढ़ने दे तो चुरा कर पढ़ने का प्रयास करें। फिर आपको धर्म बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लोग आपके रास्ते का पालन करेंगे। यह मन से निकाल दें कि फलां ज्ञान दूसरे का है मैं इसे कैसे ग्रहण कर सकता हूं जो वास्तविक ज्ञान होगा, भले सूक्ष्म हो हर समुदाय हर धर्म में मानव जाति के कल्याण के लिए ही बनाया गया होगा, विद्वेष और असमानता फैलाने के लिए नहीं..

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