सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेउ मुनि नाथ ।
हानि, लाभ, जीवन मरण, जस, अपजस विधि हाथ ।।
श्री दशरथ जी के मरण और श्री राम सीता के वन गमन के पश्चात, जब भरत जी ननिहाल से आकर अयोध्या की दुर्दशा देख कर, विलाप करने लगते हैं,
तब गुरु वशिष्ठ जी, उन्हें समझाते हुए उक्त बातें कहते हैं ।
परंतु यहाँ एक बात स्मरण रखने योग्य है, कि हार-जीत, सुख दुःख भले ही अपने हाथ न हो, लेकिन उससे विचलित न हो कर, पुनः प्रयास करना तो अपने हाथ है ।
मृत्यु भले ही विधाता के अधीन है, लेकिन शेष जीवन तो अपने पास है, उसे तो अपने सत्कर्म द्वारा बेहतर कर सकते हैं ।
"अर्थ न धर्म न काम रुचि, गति न चहों निर्वाण ।
जन्म जन्म सिय राम पद, यह वरदान न आन ।।
🙏 सियावर रामचन्द्र की जय 🙏-
8 OCT 2019 AT 7:41