Namrata Singh   (Namrata Singh-Property O)
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Joined 3 December 2017


Joined 3 December 2017
30 JUN 2020 AT 20:08

सिसकियाँ सुनाई देती रहीं रात भर
पर तुमने कभी पूछा भी नहीं
और मैंने कभी बताया भी नहीं।

मैं डूबती रही तुम्हारे सामने रहते-रहते
मैंने हाथ माँगा भी नहीं
और तुमने हाथ बढ़ाया भी नहीं।

तुम भूलते रहे मुझे हर रोज़ ज़रा-ज़रा
तुमने याद किया भी नहीं
और मैंने याद दिलाया भी नहीं।

रिश्ता कुछ यूँ उलझा कि उँगलियाँ कटने लगी
तुमने भी उलझने दिया
और मैंने कभी सुलझाया भी नहीं।

ख़ाक हो गया जो भी था हमारे दरमियां
तुमने भी जलने दिया
और मैंने कभी बुझाया भी नहीं।

तुम्हारी दिल्लगी के चर्चे हर जगह सुनें मैंने
पर दिल ना लगा कहीं मेरा
और दिल मैंने कभी लगाया भी नहीं।

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28 NOV 2020 AT 18:44

नाव जज़्बात की डूबाना चाहता है दिल, किनारे पर अब तो
कि माँझी ने अब तलक मझधार से आगे जाना नहीं सीखा ।।

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27 NOV 2020 AT 12:43

जो सरे बाज़ार बिक जाते तो
खुद को तवाय़फ ही कह लेते,
यहाँ पूरी तरह निलाम भी हुए
फिर भी किसी के ना हो पाए।

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26 NOV 2020 AT 16:47

मोहब्बत कहाँ बाकी है किसी में,
जो गौर से देखा जाए।
खरीदार बहुत मिल जाते हैं बाज़ार में
चलो खुद ही खुद को बेचा जाए।

दिल खिलौना तो बहुत बार बना है
प्यार में, किसी की ख़ातिर,
इस खेल से हमेशा के लिए फ़ारिग हो जाएँ
कुछ इस तरह जज़्बात से खेला जाए।

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25 NOV 2020 AT 13:19

आज में रह कर भी सबने कल का हिसाब लगा रखा है।
अपनी बुजदिली के आगे बेबसी का जवाब लगा रखा है।

हम कहाँ शामिल हैं उन में, जिन्हें चाह हो किसी की
हमने सीने से किसी के नाम का अज़ाब लगा रखा है।

जिन में है गुंजाइश बेहतरी की, वो आज भी दुआ करते हैं
हमने अपनी मर्ज़ी से रूह पर,मोहब्बत का दाग़ लगा रखा है।।

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22 NOV 2020 AT 22:29

उनकी उलफत़ में सीख लिया है,
मन को मारना जब से
निबाह ज़रा आसान
हो गया है उनसे तब से।

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21 NOV 2020 AT 19:58

चाहने वाले तो बहुत, मिलते रहे महफ़िल में
पर क़दरदाऩ हमेशा मिलते-मिलते रह गए ।

जमीं मिली, लोग मिले और मिली उनसे कई ठोकरें
परवाज़ और आसमां हमेशा मिलते-मिलते रह गए।

कोशिश तो बहुत रही कि दूरीयां ना मिले मोहब्बत में
पर जिस्म और जां हमेशा मिलते-मिलते रह गए ।।

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31 OCT 2020 AT 12:37

अब और कैसे बयां करूँ मैं, अहमियत तुम्हारी
एक शख्स की शक्ल में, मेरी ज़िन्दगी हो तुम।।

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4 AUG 2020 AT 22:08

गाहे-ब-गाहे होश में आ जाते हैं
लोग कहते हैं इतनी बेख़ुदी अच्छी नहीं लगती।

अब जन्नत भी मिले तो ठुकरा देंगे
कि तुम्हारे बिना कोई खुशी अच्छी नहीं लगती।

तुम ले गए चैन-ओ-सुकून इस दिल का
अब ये आसमां और ज़मीं अच्छी नहीं लगती।

दर्द-ए-रुख़्सत का अब इलाज़ करे कोई
ये बेबसी और ये इज़्तिराबी अच्छी नहीं लगती।

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4 AUG 2020 AT 12:35

भरी महफ़िल में जब तुमने मुझे बेवफा कहा होगा
मैं बस ये सोचती हूँ तुम्हारा चेहरा कैसा रहा होगा।

जो दिल अय्याशी बेहतर समझने लगा है आशिकी से अब
उस दिल ने अब तक ना जाने क्या-क्या ही ना सहा होगा।

जज़्बात खाली हो रहे थे एक-एक कर मेरे दिल से
पर तुम्हारे शहर में कुछ-कुछ बरसात सा लगा होगा।

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