कहुं एक बात करोगे याकिन,
एक अरसे बाद डायरी पलटी है मैंने अपनी।
हाँ चलो माना गए तुम सब भूला,
और क्यों ना हो मैं हुं क्या कम बुरा।
पर जाते हुए मुझे मेरी प्रेरणा (तुम) वापस दे गए,
लिखने की वजह (तुम) वापस दे गए।
भूल गई थी ये खूबसूरती,
फरेब का चोला लिऐ थी घुमती।
हां सुनो,
थी तुम्हारी बदकिश्मति या कहूं मेरी खुशकिश्मति,
प्यार पहले तुम्हें हुआ,
अब जब मुझे धिक्कार जानें लगे तुम तब मुझे हुआ,
पर जब ये मुझे हुआ क्या कहुं पागलों सा अब कयूं हुआ।
ना ना समझना ना हैं तुमपे कोई बंदिश,
ये तो हैं बस मेरी नाकाम कोशिश।
मोह नहीं रखती तुम मिलो जिंदगी भर,
मुझसे मेरी वापस पहचान कराई हैं ये बस एहसान भर।
हां निकाल दिया मुझे जिंदगी से अपने,
पर अब यूंही मिलते रहेंगे तुमसे,
अपनी कल्पनाओं, शब्दों और कविताओं में।
_✍नम्रता
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