कुछ नहीं कह कर भी जाने किस कदर !
आदमी खाता है ठोकर दरबदर !!
जिनको अपना मान कर चलते रहे,
उसने छुपकर वार किया है पीठ पर।
बेजुबान जानवर अच्छे हैं फिर भी,
शिद्दत से वफादारी निभाते हैं मरकर।
नखरें उठा और अरमां भी किए पूरे,
वही मां बाप को देते हैं गम उम्रभर।
खुद के लिए जीते हैं, जीता है जहां
औरों का हक भी मार रहते बेखबर !
प्यार के दो बोल समझे जानवर भी,
अपनों से वफादार 'प्रकाश' रहगुजर !
नमिता'प्रकाश'✍️✍️
४/५/२०२२
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तेरे आने की आहट में तेरा इंतजार करती हूं ।
मुझे तुमसे इश्क है उसका करार करती हूं।।-
यह रात और तन्हाई कितनी मुश्किल से मिलती है।
तमन्नाओं की कली इसी साए में खिलती है।।-
वफा की उम्मीद में बचा कर दामन रखा है।
मेरी आरजू को तुमने निगाहें- आंगन रखा है।।-
थोड़ा कष्ट सह लेना चाहिए
किसी के काम आ सके हम तो खुशकिस्मत समझना चाहिए।
अगर वह काम ज्यादा तो थोड़ा कष्ट सह लेना चाहिए।।-
तुमने ना देखा प्यार को बर्बाद कर दिया।
अपनों को रुलाकर उनका वजूद खो दिया।।-
कभी-कभी कुछ रिश्ते
गैर होकर भी अपने से लगते हैं।
अपने तो अपने हो कर भी
बेगैरत सपने से लगते हैं।।
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तेरी चाहत पर मेरी चाहत भारी पड़ी।
तुझसे ज्यादा महंगी तेरी यारी पड़ी।।-
अपनी दुनिया तलाश करनी है
चाहते अपनी सरेआम करनी है।
इश्क तुमसे किया चाहतों के दम,
जिंदगी अपनी तेरे नाम करनी है।।-
चाहतों के आगे इंसान खो गया है
राहतों को देकर भगवान हो गया है।
हसरते हो पूरी रहे न कुछ अधूरी,
साम दंड भेद कर शैतान हो गया है।।-