वो चाय की प्याली उनकी याद दिला जाती है , सोए हुए यादों को फिर से जगा के चली जाती है, अब कैसे बताए की यादों के साथ जीना कितना मुश्किल होता है, ये तीखी ,मीठी यादें रुला के चली जाती है।
क्या करे इस दिल का ,ये मानता ही नहीं है, सौ सबूत देदो मगर इंसाफ मिलता ही नहीं है, अब हमने भी खुद को खुद के हाल पर छोड़ दिया, ले ली उनकी तकलीफे बदले में , खुद के हिस्से की खुशियां भी उनकी झोली में डाल दिया।