फर्क नहीं पड़ता सामने कौन है, जो गर हो पीछे तुम।🇮🇳
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मालूम नहीं कि आपके लिए क्या कर सकेंगे
लेकिन जितना हो सकेगा वो सब करेंगे।-
ज्यादा तो नहीं पता इन लकीरों के बारे में,
मगर हां
तुम हो तो एक लकीर भी काफी है।-
अंतिम प्रश्न #मां____
आप तो जननी है अम्मा,
बहुत कुछ सहा होगा आपने भी।
एक स्त्री मन को आपसे अच्छा भगवान भी नहीं समझ सकते...।
"सोना देकर ईंट पत्थर कौन खरीदता है अम्मा।"
बाबू जी की इज्जत तो वो बचा लेगी इस कहानी में,
लेकिन उस बच्ची के सपने का क्या,और
उस लड़के का क्या जिसे लगा था
उसके सर पर भी मां का हाथ होगा फिर से।
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जाति___
इंसान की जो जाति है वो बस इतनी है कि वो हमेशा अपने से कमजोर को ही तकलीफ दे सकता है,
अपने से मजबूत या अपने से ऊपर वाले को
हम इंसान क्या ही तकलीफ दे पाएंगे।
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एक ढीठ सा लड़का____
जब भी देना हुआ कोई प्यारा उदाहरण,
हमने सिर्फ कहा "उनकी तरह"।
जल जाते हैं लोग जो बहुत करीब हैं उनके
सिर्फ उनके प्रति मेरे आदर सद्भाव से।
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सुनिए माधव___
मेरा प्रेम निःस्वार्थ और निःशब्द है, इसलिए
कभी खत्म होता नहीं मुझसे,
अगर प्रीत में कोई स्वार्थ होता वो नष्ट जरूर होता।
किसी की भावना और सम्मान को ठेस
पहुंचे ऐसी वाणी मुझमें रही नहीं।
न कुछ पाने की खुशी है न कुछ खोने का गम ।
यहां तक कि प्रेम के बदले प्रेम भी नहीं चाह अब।
एक उदासी है जो स्थाई हो चुकी है वर्षों से हृदय में,
जो वृंदावन में छाई थी, कान्हा के चले जाने के बाद।
वो मार्ग दूर तक दिख रहा नहीं जिस पर वो चल रहे हैं।
मुझे वो मार्ग दिखा दो कन्हैया।
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आसान नहीं होता____
एक प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना,
क्योंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी,
झुकती नहीं वो कभी
जबतक न हो
रिश्तों में प्रेम की भावना।
तुम्हारी हर हाँ में हाँ और न में न कहना वो नहीं जानती,
क्योंकि उसने सीखा ही नहीं झूठ की डोर में रिश्तों को बाँधना।
वो नहीं जानती स्वांग की चाशनी में डुबोकर अपनी बात मनवाना,
वो तो जानती है बेबाक़ी से सच बोल जाना।
फ़िज़ूल की बहस में पड़ना उसकी आदतों में शुमार नहीं,
लेकिन वो जानती है तर्क के साथ अपनी बात रखना।
वो क्षण-क्षण गहने- कपड़ों की माँग नहीं किया करती,
वो तो सँवारती है स्वयं को अपने आत्मविश्वास से,
निखारती है अपना व्यक्तित्व मासूमियत भरी मुस्कान से।
तुम्हारी गलतियों पर तुम्हें टोकती है,
तो तकलीफ़ में तुम्हें सँभालती भी है।
उसे घर सँभालना बख़ूबी आता है,
और अपने सपनों को पूरा करना भी।
अगर नहीं आता तो किसी की अनर्गल बातों को मान लेना।
पौरुष के आगे वो नतमस्तक नहीं होती,
झुकती है तो तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम के आगे।
और इस प्रेम की ख़ातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है।
हौसला हो निभाने का तभी ऐसी स्त्री से प्रेम करना,
क्योंकि टूट जाती है वो धोखे से,
छलावे से, पौरुषत्व के अहंकार से,
और फिर जुड़ नहीं पाती है,
किसी शल्य उपचार से।-