Nalini Tiwari   (नलिनी तिवारी)
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"इकत्तीस दिसंबर" की शाम हूं मैं...
Joined 5 July 2019


"इकत्तीस दिसंबर" की शाम हूं मैं...
Joined 5 July 2019
23 APR AT 1:24

अलग बनने की चाह नहीं, सबसा बनना चाहते हैं।
बराबरी पर बहस नहीं साझा हर जिम्मा चाहते हैं ।।

तुम अकेले मत जोड़ना पैसे, हर मजबूर पिता के जैसे ।
माँ की जुटाई हिम्मत से, एक पहाड़ बनाना चाहते हैं।। बराबरी...

फक्र जिन्हें तुम कहते आए, न व्यर्थ कहीं तुम शीश नेवाए।
बेटाबेटी से परे हैं हम बस संतान बताना चाहते हैं।। बराबरी...

दुनिया देगी तुमको ताने, पर धकोसले हमने कब माने।
उन बाणों का पतवार बना, नव संसार चलाना चाहते हैं ।। बराबरी...

हम चार दिशा है चार पहर,न कुंठित आँखें होंगी तर।
तुम्हारी परिवर्तन की फूँक से अब सैलाब ले आना चाहते हैं।।

बराबरी पर बहस नहीं. साझा हर जिम्मा चाहते हैं।।.

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21 MAR AT 21:13

बाबा की वसीयत का एक हिस्सा ..
सबकी आँखों से बचता हुआ...
मेरी कलम में आ गिरा
हथिया लिया मैंने चुपचाप ..
बिना किसी से कहे ..
बस लिख लिख कर...
कहती रही, बाँचती रही ,बचाती रही ..
बाबा का लेखन रूपी वसीयत का वो हिस्सा ...
अब बाबा की चिट्ठी के अलावा ,
मेरी डायरी के भंडार ...
बंद किए हुए हैं ,
छुपाये हुए हैं,
वो हिस्सा ..
जिनका कभी न हुआ ,
ना होगा कोई हिसाब...

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11 FEB AT 23:25

मैं फलक राग की रागिनी ..जो गाओ तो बनूँ संगीत ।
बाँसुरी के तान से छूटी ..वीणा के तारों में टूटी ..
आरोह बन आकाश चढ़ी ..
अवरोह गिरी पूरा कर गीत ।
मैं फलक राग की रागिनी..जो गाओ तो बनूँ संगीत ।।
कंठ की सीढ़ी मेरा वास ..तल्लीन हो जो चढ़ी हो श्वांस ..
कानों मे मिश्रित कर के मिश्री..
बना जो स्वर ही मेरा मीत।
मैं फलक राग की रागिनी..जो गाओ तो बनूँ संगीत ।।
व्यंजन के व्यंजन की चटोरी ..मीठे शब्दों की प्यास भी थोड़ी..
अलंकार की तश्तरी में ..
परोसे अद्भुत आहार ख़लीत।
मैं फलक राग की रागिनी..जो गाओ तो बनूँ संगीत।।
फलक की ही हूँ बुनावट...राग चाँदनी की सजावट...
तारों की परछाईं जुगनू...झींगुर के सुर की हूँ आहट..
चाँद का सरगम तारें गाएँ ..सूरज के सप्तक किरणें लाएँ ..
आकाश फैली आकाशगंगा ...सब मिल कर गायें सुर नवनीत ..
मैं फलक राग की रागिनी..हूँ वही राग..हूँ वही संगीत ...!!

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8 FEB AT 16:41

व्यंजन के व्यंजन की चटोरी ..
मीठे शब्दों की प्यास भी थोड़ी..
अलंकार की तश्तरी में ..
परोसे अद्भुत आहार ख़लीत।

मैं फलक राग की रागिनी
जो गाओ तो बनूँ संगीत।।

(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें।)

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19 JAN AT 21:39

संगम हो सूरज गंगा सा..
ना ताप बुझी ना गंगा सूखी ...

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18 JAN AT 20:21

प्रीत अँधियारी सूरज से ..
चलें भी तुझ सा जलें भी तुझ सा ...

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4 NOV 2023 AT 1:32

उठते ही ढूँढूँ चारों ओर,वो मेज़ किनारे जा छुप जाती..
मैं चौंधियाई आँखें मींचूँ ,वो हाल देख मेरा मुस्काती..
फिर टोह टटोलकर जैसे तैसे हाथ जहाँ वो मेरे आती..
झट गोद उठा आँखों का तारा,आँखों के सामने बिठाती..
दुलारी सर चढ़ बैठी मेरी ऊँगलियों से खुसफुसाती..
नाक चढ़े कानों को ऐंठे,आँखों की मेरे धुंध हटाती...
जो शब्द गिर गए काग़ज़ पे,वो उसे उठा कर मुझे दिखाती..
हर शब्द फिर बड़े प्रेम से, सहेज काग़ज़ पर सजाती
मन के उफान जो लिखने हो,वो चढ़ कर सर मेरे लिखाती..
अपने ही शब्द जो ना दिखे वो मेरी कविता मुझे सुनाती..
जो धुंधली हो चली थी राहें , साफ़ साफ़ मुझको दिखलाती ..
साथी मेरी वो "सारथी"
दुनिया में "ऐनक" कहलाती

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10 OCT 2023 AT 20:40

खरीदी है मैंने पंख अपनी ,
रखकर आज़ादी को गिरवी !!
उड़ रही हूँ पंख लिए ,
उड़ती ही रहूँगी जब तक
छुड़ा ना लूँ पंखदार से
अपनी गिरवी पड़ी आज़ादी ...
नहीं देखनी राह किसी की
जो ले आए आज़ादी मेरी ..
एक जगह से दूजे दर,
ना रखनी गिरवी मुझे आज़ादी ..
हाँ पंख जिनके दिए हुए ,
हैं ताक लगाए बैठे हर पल ..
बिन छुड़ाए निकल ना जाऊँ
आज़ादी, उड़ दूर कर छल..
फैला सकूंगी उतने ही पर
जो लिपटा ना जाए खंजर
तोड़ करार जो उड़ चली तो
पिंजर ही घर पिंजर अम्बर ...

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30 SEP 2023 AT 11:25

जितनी बार धरती खनी ,
नयी मिट्टी, नयी खुशबू ,नया रंग ...
जितनी बार मैं खनी ,
नयी अभिज्ञा ,नया जीवन, नयी उमंग ...
"मिट्टी " मैं ही हूँ क्या शायद ??
या शायद ये मिट्टी "मैं " है ......

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4 SEP 2023 AT 23:20

हो सफ़र जो दिनभर का तो ,
कुछ ऐसा इन्तेजाम रखना ..
दिन भर के उजाले में ,
तुम "दुनिया" को लिखना..
ग़र लिखने बैठे रात को दुनिया ,
अँधियारी छुपा लेगी पृथ्वी ,
आईना दिखाने लगेगी खिड़की ,
तुम देख आईना खुद पर लिखना ...
फिर अँधेरे बुला लेना अंदर ,
वो दिखलायेगा तुमको दुनिया ..
फिर लिखते रहना चाँद सितारे,
फिर जी भर नर्म हवायें लिखना ...
ज्योत बना अँधेरे को तुम ,
जो भी दिख जाए सब लिखना ।।

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