कहती है लिखना हो कभी मेरे बारे में, तो थोड़ा अदब से लिखना
गुस्सा जल्दी आ जाता है, तो जरा परख कर लिखना !
इंतकाम अच्छे है पर उसके हर अदाकारी के
मैं जैसे ही वैसे ही बयान कर थोड़ा समझ कर लिखना!!
क्या पता? सब हमदर्द समझने लगे तो शायद दर्द ही खतम हो जाए,
सुनो जिन बातों के जवाब नही होते, इंतकाम उनकें थोड़ा सरल लिखना!
लिखना वो किस्से, जो जिंदादिली का एहसास कराते हे
पाने पर अहमियत खतम नही होती तुम यह सच्ची पहल लिखना!!
माना मशरूफ रहना तो जमाने की रीत है ,
पर जब कुछ खास लिखना हो तो बेजिझक खुद को लिखना !
कितनी समानता है ना पसंद वाली बातो में ,,
रूह को छू जाए तुम ऐसी आखिरी कलम लिखना!-
क़ाफ़ियत सा अफ़साना, दीदार मोहब्बत मे तेरे !
सरल, सहज स्वाभाव से ख़ुद को परखना, ज़िंदगी का एक खेल है !!-
जब आसमा का दूसरा छोर, समुंदर को छूता दिख रहा होगा,
जब मैं हवा से तेज, अपनी धड़कन को महसूस कर रहा होगा!
जिसे देख सांस थम भी जाए, तो शायद कोई गम न होगा,,
उस रोज, समय भी जरा थमा सा, मजबूर दिख रहा होगा!!
जब यह शिद्दत होगी, हम तब मिलेंगे..
अब हम तब मिलेंगे ..
जब कुछ गलतियां को, पीछे छोड़ने का वादा किया गया होगा,
या साथ देने वाले वादों का सही मतलब, किसी एक के द्वारा भी अदा किया होगा!
जब होगा की, बस अब किसी ओर की मन्नत नही जिंदगी में,,
उस दौर शायद सूरज भी देर से ढलता, महसूस हो रहा होगा!!
हम तब मिलेंगे ..
जब लगेगा कोस-मोस थ्योरी से बेहतर, अपना एक जहान होगा,
या खुद का, खुद से, घर बनाने का सपना, सच होता दिख रहा होगा!
जब लगेगा वापस एक बार फिर गलतियों को अपना कर, सही करने का ख़यालात किया गया होगा,,
शायद उस पहर तु खुद को हार कर, उसको पाते हुए देख रहा होगा!!
जब तू खुद से ज्यादा, दूसरो की परवाह करना सीख चुका होगा..
अब हम तब मिलेंगे !!-
चलो एक बार फिर अश्कों को बंद किया , दिल के तहखाने मे,
और निकल पड़ा पहली मोहब्बत को ढूंढने, वापस उसी जमाने में !!
एक बार के लिए, सच की जूठी बुनियाद ही सही,,
कुछ इंतजार ही खत्म होगा, शायद इसी बहाने मे!!
ताल्लुकात अब रहे या ना रहे मगर डर है, जख्म ताजा ना हो जाए वापस उसी फसाने मे,
सच बताऊं तो जुल्म सहना जुल्म करने से बड़ा गुनाह होता है, क्या गुनाह करके कोई महफूज रह सकेगा भला इसी जमाने में !
लो जितना जालिम करना था सहना था, सब सह लिया मैने,,
बताओ, क्या फिर से वैसी मोहब्बत हो सकती है जो हुई थी, पहली दफा बिना वजह चाहने मे !!
दाव पेंचो से निकल, कई मर्तबा समझाया है खुद को, क्योंकी जिंदगी निकल जाती है एक गलती की कीमत चुकाने में,
क्या पता जरा बात करने से ही सुलह हो जाए मालिक, खुद से हार कर बोझ नहीं बनना इस मतलबी जमाने में!!
हां फिर क्या? एक बार के लिए, सच की जूठी बुनियाद ही सही,,
कुछ इंतजार ही खत्म होगा, शायद इसी बहाने मे!!-
वो सवाल बस, एक सवाल बन कर ही रह गया,
हा या ना की वकालत कभी हुई ही नहीं!
न्यायाधीश भी मै, और कटघरे मे भी मै,
किसी से बेवफाई, कभी की ही नहीं।।
कुछ मोड को कैसे अंजाम दू मालिक,
अलग होने की बात, कभी हुई ही नही।
कभी कभी एक फैसला पूरी जिंदगी बदल देता है,,
हालत बदल दे जो किस्सा, उस किस्से की सुनवाई कभी हुई ही नही।।
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शायद ये डर ऐसा है, जो किसी को बता ना पाऊ,
अंदर ही चाहे टूट जाऊ, पर बिना बोले चुप हो जाऊ!
जो चाहत है तुम्हे पाने की, इस कदर जहन मे,,
हवा भी तुझे बता दे, पर मैं कभी ना कह पाऊ !!
क्यों कि होता है ना, किसी को पा लेते है तो उसकी एहमियत खत्म हो जाती है ,
तुम भी मुझे उतना ही चाहते हो, शायद इस सच को मैं कभी ना समझ पाऊ !
पर जो रोक रहे है तुम्हे, बंदिशो से आगे बढ़ने को ,,
उन सब से शायद मैं जीत लू, पर डर है तुम्हारे सामने ना हार जाऊ!!
क्या मुश्किल होता है, 1 तरफा इश्क बयां करना, फिर उसी पर टीके रहना,
कुछ पल साथ बेठू, तब शायद मैं समझ पाऊ!
जो चाहत है तुम्हे पाने की, इस कदर जहन मे,,
हवा भी तुझे बता दे, पर मैं कभी ना कह पाऊ !!-
** मैं नहीं चाहता **
कशमकश की महफिल मे, एक दीदार से,
इश्क में फ़ना होना, मैं नहीं चाहता!
कबूल-ए-आम जिंदगी, खुली हवा वाली,,
हाथो की लकीरें बदलना, मैं नहीं चाहता!!
गुलजार हू गुमनाम हू, विरह की आग रहने दो,
शायर ही सही, इश्क़ का जूठा जाम पीया नही जाता!
आफताब सी धधकती, सब कुछ पा लेने की चाह मेरी,,
पर एक और दिल दुखाना, मैं नही चाहता!!
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इश्क का मोहताज बना कर, जो तुम छोड़ गए हो खुद के हवाले,
दिल देता ही नही अब किसी को इजाजत, चाहे क्यो ना हो रूह भी पढ़ने वाले!
ये जो आजकल हवाओ मे अपनी, महक बिखेर फिरते हो,,
बाजार मे शातिर बहुत मिलेंगे, बिना मोहब्बत चाहने वाले!!
दीवारों पर लिखे नाम, जो अक्सर मिट जाया करते है,
एक पैगाम रब दा,
लोग मिले तो ऐसे मिले, जैसे रूह पर नाम लिखने वाले!
खेर इंसान ढ़ल जाता है, हालातो के बीच में,,
अगर लोग ऐसे मिले, जैसे ख़ुद को एक रंग मे रंगने वाले!!
बस फिर क्या, कोनसी खता और कोनसा फासला,
जब दोनो मिलेंगे, एक ही ख्वाब बुनने वाले!
कुछ बाते सबको बताना, कीमत चुकाने जैसा होता है,,
क्योंकि पीछे से छुरा घोप कर बहुत मिलेंगे, हाल पूछने वाले!!-